अच्छे लोग और अपने हितैषियों को हम पहचान नहीं पाते और अपने विरोधियों के प्रति पूरी तरह शत्रुता, इन्कारने का भाव रख लेते हैं। इसे चिंतन दोष कहा जाएगा। न कोई पूरी तरह अच्छाई से भरा है और नहीं बुराइयों से भरपूर होगा। मनुष्य गुण-दुर्गुण का मिलाजुला रूप है। हमें इस संतुलन के विचार को सावधानी से उपयोग में लाना चाहिए। अपने विरोधियों के विचार जानते रहना चाहिए, खासतौर पर जब वे आपके लिए व्यक्तिगत टिप्पणी कर रहे हों।यदि इसका निष्पक्ष विश्लेषण करें तो हमें बहुत सी काम की और हितकारी बातें हाथ लग सकती हैं। इस प्रयोग को झेन फकीरों ने बखूबी किया है। जब भी कोई शिष्य उनसे दीक्षित होता, तो गुरु कहते जाओ, हमने पा लिया, हमारे हो गए, अब कुछ दिन जरूरी रूप से हमारे विरोधी के पास जाकर रहो। हमारा दूसरा पक्ष वहां नजर आएगा, लेकिन जाना निष्पक्ष होकर। इस बात की पूरी संभावना रहेगी कि विरोधी कुछ मामले में सही भी हो।
हमारा और विरोधी का पक्ष मिलकर एक तीसरा नया पक्ष बन जाए जो और भी श्रेष्ठ हो सकता है। यदि तुम्हारा इरादा नेक होगा तो हमारे और हमारे विरोधी दोनों की गलत बात को नकार कर तुम एक नई सही बात प्राप्त कर लोगे। इसलिए विरोधी विचार या व्यक्ति से शत्रुता न पाली जाए। यदि नेक इरादे से चलेंगे तब जो आज शत्रु है कल मित्र हो सकता है। यदि अपने भीतर की आध्यात्मिक योग्यता को विकसित करना है तो विरोधी के विचार को सम्मान देना सीख जाएं। स्वयं के व्यक्तित्व को अपने ही विचारों में बांधें न बल्कि विरोधी के विचारों से खोलना भी सीखें।
Note::-
यदि आपके पास Hindi में कोई article, inspirational story, Poetry या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी Id है::- kmsraj51@yahoo.in . पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks!!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
~~~~~ ::- Krishna Mohan Singh(kmsraj51) …..~~~~~~~~~~~
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
Nice reading about you Krishna Mohan Singh. Aap achha likhte hain, aap se milke bahut khushi hui
Thanks for visiting my blog. Be in touch. Browse through the category sections, I feel you may find something of your interest.
thank you dear 🙂
thanks!!
🙂 🙂
thanks!!
Thank you