Kmsraj51 की कलम से…..

Read Full Poetry Click on Link: ऐसा सोचा न था।

सफलता के लिए आपको अपने ब्रेन को शांत व ऊर्जावान मोड में रखने कि जरूरत है, आपकी सफलता आपके अपने हाथ में है। आपके माइंड को ऊर्जावान मोड में बनाये रखने के लिये 13 कोट्स को आपके लिये लाया हूँ आज। इन कोट्स को आप सभी अपने जीवन में उपयोग करे और सफलता कि ओर कदम बढ़ाये।
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यदि आपके पास हिंदी या अंग्रेजी में कोई Article, Inspirational Story, Poetry या जानकारी है जो आप हमारे साथ share करना चाहते हैं तो कृपया उसे अपनी फोटो के साथ E-mail करें. हमारी Id है: kmsraj51@hotmail.com. पसंद आने पर हम उसे आपके नाम और फोटो के साथ यहाँ PUBLISH करेंगे. Thanks!!
होके मायूस यू ना –
शाम की तरह ढलिये।
ज़िन्दगी एक भाैर है –
सूरज की तरह निकलिये।
ठहरोगे एक पाँव पर –
तो थक जाओगे।
धीरे धीरे ही सही –
अपनी राह पर चलते रहिये।
मंजिल मिल ही जायेगी।
अपने आप धीरे – धीरे।
अपने से कमजोर –
को दबाने वाला।
कुछ समय के लिये।
शायद बड़ा बन जाता है।
लेकिन अपने से कमजोर –
को जो बचाता है।
संभालता है सम्मान देता है।
वो तो – बहुत महान बन जाता है।
घृणा करना शैतान का काम है। क्षमा करना मनुष्य का काम है।
प्रेम करना देवताओं का गुण है॥
©- विमल गांधी जी। ∇
हम दिल से आभारी हैं विमल गांधी जी के प्रेरणादायक हिन्दी कविता साझा करने के लिए।
♣ “विमल गांधी जी” की कविताआे के हर एक शब्द में अलाैकिक सार भरा हैं। जाे हर एक शब्द पर विचार सागर-मंथन कर हृदयसात करने योग्य हैं। कविताऐं छोटी और सरल शब्दाे में हाेते हुँये भी हृदयसात करने योग्य हैं। जाे भी इंसान इन कविताओं काे गहराई(हर शब्दाे का सार) से समझकर आत्मसात करें, उसका जीवन धन्य हाे जायें।
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जब विश्वास किसी पर –
होता है तब…पराये भी –
अपने बन जाते है।
और जब – जब
विश्वास किसी पर –
टूटता है तब…
अपने भी पराये हो जाते है।
सारी बात तो –
विश्वास पर ही टिकी है।
जिस पर पक्का –
विश्वास हो जाये वो…
अपना ही लगता है।
जिस पर विश्वास –
ना हो वो कभी भी…
अपना नहीं लगता।
दिल के रिश्ते –
खून के रिश्तों से…
ज्यादा मजबूत होते है।
कही कही –
खून के रिश्ते में…
लड़ाई झगड़े –
भी बहुत होते है।
रिश्ते हमेशा –
दिल से होने चाहिये।
जीवन मे सच्चा सुख दूसरों को सुख देने में ही है। दूसरों को दुःख देने और उनका सुख लूटने में नहीं है।
©- विमल गांधी जी। ∇
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♣ “विमल गांधी जी” की कविताआे के हर एक शब्द में अलाैकिक सार भरा हैं। जाे हर एक शब्द पर विचार सागर-मंथन कर हृदयसात करने योग्य हैं। कविताऐं छोटी और सरल शब्दाे में हाेते हुँये भी हृदयसात करने योग्य हैं। जाे भी इंसान इन कविताओं काे गहराई(हर शब्दाे का सार) से समझकर आत्मसात करें, उसका जीवन धन्य हाे जायें।
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दो बंदर एक दिन घूमते-घूमते एक गांव के समीप पहुंच गये। उन्होंने वहाँ फलों से लदा पेड़ देखा। एक बंदर ने चिल्लाकर कहा – “इस पेड़ को देखो ! ये फल कितने सूंदर दिख रहे है। ये अवश्य ही स्वादिष्ट होंगे। चलो, हम दोनों पेड़ पर चढ़कर फल खाये।”
दूसरा बंदर बुद्धिमान था। उसने कुछ सोचकर कहा – “नहीं, नहीं। ज़रा ठहराे ! यह पेड़ गांव के समीप है और इसके फल इतने सुंदर और पके हुए है, लेकिन यदि ये फल अच्छे होते तो गांव वाले ही इन्हे तोड़ लेते, इन्हें ऐसे ही पेड़ पर नहीं लगे रहने देते। लेकिन इन्हें देखकर ऐसा लगता है कि किसी ने भी इन फलों को हाथ तक नहीं लगाया है। हो सकता है कि ये फल खाने लायक न हो।”
उसकी ये बातें सुनकर पहले बंदर ने कहा – ” कैसी बेकार कि बातें कर रहे हो। मुझे तो इन फलों में कुछ बुरा नहीं दिख रहा। मैं तो इन्हें खाने जा रहा हूँ, तुम्हे साथ चलना है तो चलो।”
दूसरे बंदर ने फिर से उसे सावधान करते हुए कहा – “तुम्हे इस बारे में फिर से सोचकर निर्णय लेना चाहिए। मैं भोजन के लिए कुछ और ढूंढता हूँ।” पहला बंदर पेड़ पर चढ़कर फल खाने लगा, परन्तु वे फल ही उसका अंतिम भोजन बन गए; क्योकि वे फल ज़हरीले थे।
दूसरा बंदर जब लौटा तो उसने अपने साथी को मरा हुआ पाया। इसलिए कहा जाता है कि हर चमकने वाली चीज सोना नहीं हुआ करती। अर्थात: जो जैसा दिखता है – वैसा होता नहीं सदैव।
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रिश्तों को कभी –
धोखा मत दो।
पसन्द ना आये तो –
उसे पूर्णविराम कर दो।
क्योंकि उसे आगे –
बड़ा कर…
कोई फायदा नहीं है।
उससे ज़िन्दगी –
ही खराब होती है।
जिसके साथ अच्छा लगे –
सच्ची खुशी मिले।
वही रिश्ते निभाने मे –
अच्छा लगता है।
वरना बोझ के जैसे –
ढोने पड़ते है रिश्ते।
इंसान का दुखी होने का –
बस एक ही मूल कारण है।
उन चीजों के पीछे भागना –
जो – उसके पास नहीं है।
और ,,
उन चीजों को अनदेखा करना –
जो उसके पास है।
©- विमल गांधी जी। ∇
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♣ “विमल गांधी जी” की कविताआे के हर एक शब्द में अलाैकिक सार भरा हैं। जाे हर एक शब्द पर विचार सागर-मंथन कर हृदयसात करने योग्य हैं। कविताऐं छोटी और सरल शब्दाे में हाेते हुँये भी हृदयसात करने योग्य हैं। जाे भी इंसान इन कविताओं काे गहराई(हर शब्दाे का सार) से समझकर आत्मसात करें, उसका जीवन धन्य हाे जायें।
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श्री गणेश मंत्र ~
ऊँ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभं।
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।
रविवार, 13-अगस्त-2017
Q. 1 .⇒ विपरीत परिस्थितियों को कैसे अनुकूल परिस्थितियों में बदले?
“या” मुश्किल दौर में आगे बढ़ने के उपाय?
“या” मुश्किल दौर से बाहर कैसे निकले?
– अवनी पाटिल – गांधीनगर (गुजरात), – निधी तिवारी – भोपाल (मध्य प्रदेश)
– गोपाल शर्मा, कोलकाता (पश्चिम बंगाल)
A. 1 .⇒ एक बात सदैव ही – याद रखें …..
अपना ध्यान सदैव ही समस्याओं के समाधान पर रखे न की समस्याओं पर। अपने माइंड को सदैव ही समस्याओं के समाधान पर फोकस करें।
Comment`s के माध्यम से अपनी राय जरूर बताये।
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हँसिये ना किसी की –
मजबूरियों पर।
ख़रीद कर नहीं लाता –
कोई मजबूरियों को।
वक्त एक सा –
रहता नहीं कभी।
डरिये वक्त की –
मार से अभी।
बुरा वक्त आज मेरा है।
तो कल तेरा भी हो सकता है।
हौसले का कोई –
परदा नहीं होता।
कड़े परिश्रम का –
कोई विकल्प नहीं होता।
दिल मे अगर जज्बा हो –
कुछ कर दिखाने का…
तो जलते दीये को भी –
आँधियों का डर नहीं होता।
ना कर वफ़ा की –
उम्मीद ज़माने से।
हर कोई हर किसी से –
उम्मीद लगाये बैठे है।
जब समय आता है –
वफ़ा निभाने का।
तब लोगो की नीयत –
और चेहरे बदल जाते है।
जो बड़ों का मान नहीं करते। अपने आगे उन्हें कुछ समझते नहीं। वह जीवन मे कभी भी उन्नति नहीं कर पाते।
©- विमल गांधी जी। ∇
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देखकर तेरी रजा को, डूब मैं इतना गया।
पागलों सा हो गया, अश्क नैनों में भरा॥
चल पड़ा उस ओर मैं, उम्मीद एक जोड़कर।
फूल-फूल चुन लिए, पात-पात छोड़कर॥
हौसले बुलन्द हुए, संकेत तेरा मिल गया।
देखकर तेरी रजा को, डूब मैं इतना गया॥
सब्र न अब हो सका, प्यार का पहरा हुआ।
संगीत के छन्द भी, साथ मेरे चल दिए॥
एक छन्द ने कहा, प्यार आज हो गया।
देखकर तेरी रजा को, डूब मैं इतना गया॥
कदम तो अब बढ़ गया, आस की राह थी।
फांद गए आग पर, न जान की परवाह की॥
ख्वाब बस एक था, ओंठ तेरी चूम लूँ।
बाँह तेरी डालकर, एक बार झूम लूँ॥
संगीत भी चल रहा, काव्य न पूरा हुआ।
देखकर तेरी रजा को,डूब मैं इतना गया॥
©- गोपाल “गुलशन” – बाराबंकी (उत्तर प्रदेश) ∇
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श्री गणेश मंत्र ~
ऊँ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभं।
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।
रविवार, 06-अगस्त-2017
Q. 1 .⇒ मन को शांत करने का सबसे कारगर तरीका क्या है ?
“या” कैसे मन को शांत करें?
“या” मन को शांत करने की सरल विधि?
“या” कैसे अपने मन को सदैव शांति की अवस्था में रखें ?
– रेणु जोशी – आबू रोड (राजस्थान), – स्वाती शर्मा, पूर्णिया (बिहार),
– तरुण वर्मा, इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश), – मेघा त्रिपाठी, (दिल्ली)
A. 1 .⇒ एक बात सदैव ही – याद रखें …..
सभी बचपन से ही सुनते आ रहे है कि मन बहुत ही चंचल है – एक जगह रुकता ही नहीं। इधर – उधर भागता ही रहता है। इसको कैसे काबू में करें।
सबसे पहले स्वयं से यह प्रश्न करें कि आखिरकार मन क्यों चंचल है ?
क्या बच्चा जब पैदा होता है तो मन इसी तरह से चंचल होता है ?
मन के चंचल होने का कारण क्या है ? etc….
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मेरे प्रिय पाठकों आप सभी को तहे दिल से रक्षाबंधन की शुभकामनाएं।
Best wishes to Rakshabandhan with all my dear readers.
भाई और बहन के पवित्र रिश्ते व सच्चे स्नेह का पर्व।
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बड़े बाबू को घर में भी सभी बड़े बाबू कहते हैं। उन्होंने चपरासी से लेकर बड़े बाबू बनने का सफर चालीस साल में तय किया। जब वह रिटायर हुए तो घर वाले मायूस हो गये। उनकी मायूसी का कारण कम पेंशन नहीं पर टेबिल के नीचे की वह कमाई थी। जिसे ऊपरी कमाई कहते है। वह किताब बंद हाे रही थी। सब अंदाज लगा रहे थे कि जी॰ पी॰ एफ॰ में उनका कितना हिस्सा होगा पर बड़े बाबू ने यहां पेंशन ली और वहां एक पथरीली जमीन का सौदा कर डाला।
बच्चे सब निठल्ले थे अतः उन्हें सोचने का अधिकार था। उन्होंने सोचा कि बुढऊ मोटर साइकिल तो दिला नहीं रहा है, बंज़र ज़मीन खरीद रहा है। निश्चय ही सेवानिवृति के बाद बुढऊ सठिया गया है। प्रकट में बड़ा लड़का बोला “बापू आपने पूरी नौकरी एक विंटेज साइकिल में निकल दी अब मोटर साइकिल खरीद लेते तो सबको सुविधा हो जाती।”
बड़े बाबू बोले “अगले साल फसल आने पर सबको सब कुछ दिला दूंगा।
छोटा बोला बापू तू पक्के में सतिया गया है। उस बंजर पथरीली ज़मीन में फसल कैसे उगेगी।
बड़े बाबू बोले “बेटों बुद्धिमान लोगों कि फसल ज़मीन में नहीं उगती है। दोनों बेटे चुप हो गए। बड़ा सोचने लगा बुड्ढा घाघ ताे है। पूरी नौकरी में चौबीस घंटे बदमाश रहा है। हो सकता है कि किसी गुंताड़े में हो। एक साल इंतजार करने में कोई हर्ज नहीं है। कौन ये एक साल में मरा जा रहा है।
दूसरे दिन बड़े बाबू बोले इंश्योरेंस कंपनी के ऑफिस गये। वहां सब व्यस्तता का नाटक कर रहे थे। सब फंदा डाले बटेराें का इंतज़ार कर रहे थे। बड़े बाबू ने एक एजेंट से पूछा “मुझे फसल का बिमा करवाना है। मुझे किससे मिलना चाहिए।
आपको मुझसे ही मिलना चाहिए बल्कि मुझे ही आपसे मिलना चाहीये। चलिए फसल का मुआयना कर लिया जाये। बड़े बाबू बोले बॉस मई अपनी गाड़ी लेकर आता हूँ। आप पांच मिनट रुके।”
वह एजेंट बोला – “मुझे टॉयलेट जाना होता है तो पांच मिनट रुक भी सकता था। बिमा जैसी महत्वपूर्ण क्रिया में तो एक क्षण भी व्यर्थ नहीं गवां सकता। आप मेरी कार से आपकी फसल का मुआयना करा दिजिए।”
बड़े बाबू उसकी कार में बैठ कर उनके खेत में ले गए जहां पत्थर पड़े थे। एजेंट ने भौचक होकर पूछा “फसल कहां है जिसका बीमा होना है।” बड़े बाबू ने कहाँ देखिये क्षितिज तक फसल लहलहा रही है। जरा आपका हाथ तो आगे कीजिये – एजेंट समझ गया कि बड़े बाबू बगैर बीज बोये फसल लहलहाना चाहते है। उसने पैंट के बाजू से पोंछ कर हाथ आगे कर दिया। बड़े बाबू ने रूपये दस हजार उसकी हथेली पर रख दिए। एजेंट खुश होकर बोला “अरे हां, फसल तो यहां से वहां तक लहलहा रही है।” माफ करना मैंने चश्मा नही लगाया था। पर फसल में आग एक माह के पहले मत लगाना।
बड़े बाबू ने ऐसा ही किया। फिर एक माह बाद फसल नष्ट होने की बीमे की राशि पांच लाख रुपये पत्नी के हाथो में रख दी। बेटों को उनके मन के सढियाने के बजाय आदर सूचक भाव आ गये।
इसके बाद बड़े बाबू एक राष्ट्रीयकृत बैंक के प्रबंधक के पास गये। उससे खड़े-खड़े ही निवेदन किया “”सर मुझे खेत में कुआं खुदवाने, बीज और खाद के लिए ऋण चाहिए।”
मैनेजर खड़ा हाे गया और बाेला – “बैठिये सर मैंने सोचा कि आप खाता खुलवाने के लिए आये है। आप खेत के कागजात तो लाये है। आजकल सरकार किसानो के पांच लाख तक के ऋण माफ़ कर रही है। ऋण ग्राहक हमारे लिए महत्वपूर्ण व्यक्ति है। ऐसा महात्मा गांधी ने कहां है।”
महात्मा गांधी डॉक्टरों को मरीज दुकानदारों एंव बैंको को ग्राहक महत्वपूर्ण व्यक्ति बतला गये है। महात्मा जी कह गए है कि ग्राहक हमे सेवा का अवसर प्रदान कर अनुग्रहित करता है। हम उस पर निर्भर है। तनखा पर नहीं।
बड़े बाबू ने बैंक मैनेजर के हाथो में कुआं खाैदा, बीज बाेये और खाद डाली। यह सब काम दस हजार रूपये में हो गये। बड़े बाबू दस हजार रूपयो से पांच लाख रूपये खरीद कर घर ले आ गये। अब उनकी बीबी और बेटों ने उनके चरण छूकर आशीर्वाद मांगा। माँ लक्ष्मी के काैन चरण न छूना चाहेगा। बस फर्क इतना था कि साड़ी पहनने के बजाय बड़े बाबू पैंट शर्ट पहने थे।
अब पटवारी साहब कि बरी थी, सरकार ने उन्हें इतने काम दे रखें है, कि वे जमीं के कागजात देखकर कुर्सी पर बैठे-बैठे ही पंद्रह किलोमीटर दूर जाकर मुआयना कर देते है। उन्होंने भी दस हजार रूपये लेकर उस पथरीली ज़मीन पर फसल लहलहा दी और बड़े बाबू से अतिवृष्टि या अनावृष्टि का इंतज़ार करने को कहा।
इन सबके बेईमानियाें की भरपाई सरकार हमारी जेब में उसका ताला लगाकर कर रही है। जहां पहले फिक्स्ड डिपाजिट पर नाै प्रतिशत ब्याज मिलता था। अब वह घट कर छः प्रतिशत रह गया। हम माह में तीन बार से ज्यादा पैसा निकल नहीं सकते। हमारे एकाउंट में यदि जी. पी. एफ. के दस लाख भी जमा करते है ताे दाे लाख से ज्यादा निकाल नहीं सकते है। सरकार ने किसानों को भिखारी बना दिया है। सरकार कहती है कि – वह बेईमानों का पैसा बाहर निकलवा कर रहेगी। अब देश में ईमानदारों के आलावा काैन बेईमान बचा है।
समूह योजना में पैसे बांटे जा रहे है। आज़ादी के पैंसठ साल बाद भी एक गरीबी रेखा नामक रेखा है, जिसके ऊपर के लाेग गरीब हाेते जा रहे है। पट्टों के नाम पर ज़मीन की लूटमारी हो रही है। जिनके पास महंगे मोबाइल, मोटर साइकिल है। उन्हें फर्जी कार्ड के आधार पर मुफ्त के मकान दिए जा रहे है।
आज प्रजातंत्र में तंत्र बहुत अधिक मज़बूत हो गया है। और प्रजा बहुत अधिक कमज़ोर हो गई है। नौकरों को लाखों रूपये तनख्वाह मिलती है। और प्रजा या तो भीख़ मांग रही है या भूखों मर रही है।
इतिश्री हथेली पर उगती फसल नामक अध्याय समाप्त !!
___________*___________
आपने किसानों की सत्यता को बहुत ही बखूबी तरीके से दर्शाया है – सभी के पेटों को भरने वाले अन्नदाता की सत्यता से रूबरू करवाया है। दिल को छूनेवाली – अत्यंत सुंदर लेख।
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परिवर्तन से डरना और –
संघर्ष से कतराना मनुष्य की –
सबसे बड़ी कायरता है।
जीवन का सबसे बड़ा गुरु –
वक्त होता है, क्योंकि जो –
वक्त सिखाता है वो कोई और…
नहीं, सीखा सकता॥
खुशी मिलती नहीं बाजार में।
ना ही मिलती है किसी के पास जाने से॥१॥
ना ही किसी से उम्मीद रखने से।
ना ही शहर बदलने से।
वो तो छिपी रहती है हमारे ही अंतर्मन मे॥२॥
ज़िन्दगी मे हर चीज़ पायी नही जाती।
जो ना मिला ज़िन्दगी मे उसे भूलना है मुश्किल॥१॥
जो बिछड़ गया सो बिछड़ गया।
किस्मत के लिखे से शिकायत की नही जाती॥२॥
जिसे हम याद करते है हर पल।
मगर यादें किसी को दिखाई नही जाती॥३॥
इस संसार मे दो तरह से चीजें देखने में छोटी लगती है – एक दूर से और एक ग़रूर से॥
©- विमल गांधी जी। ∇
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