बहाने Vs सफलता।

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMY-KMSRAJ51-N

बहाने Vs सफलता।

1. मुझे उचित शिक्षा लेने का
अवसर नही मिला…
उचित शिक्षा का अवसर
फोर्ड मोटर्स के मालिक
हेनरी फोर्ड को भी नही मिला ।

2. मै इतनी बार हार चूका ,
अब हिम्मत नही…
अब्राहम लिंकन 15 बार
चुनाव हारने के बाद राष्ट्रपति बने।

3. मै अत्यंत गरीब घर से हूँ …
पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम भी
गरीब घर से थे।

4. बचपन से ही अस्वस्थ था…
आँस्कर विजेता अभिनेत्री
मरली मेटलिन भी बचपन से
बहरी व अस्वस्थ थी।

5. मैने साइकिल पर घूमकर
आधी ज़िंदगी गुजारी है…
निरमा के करसन भाई पटेल ने भी
साइकिल पर निरमा बेचकर
आधी ज़िंदगी गुजारी।

6. एक दुर्घटना मे
अपाहिज होने के बाद
मेरी हिम्मत चली गयी…
प्रख्यात नृत्यांगना
सुधा चन्द्रन के पैर नकली है ।

7. मुझे बचपन से मंद बुद्धि
कहा जाता है…
थामस अल्वा एडीसन को भी
बचपन से मंदबुद्धि कहा जता था।

8. बचपन मे ही मेरे पिता का
देहाँत हो गया था…
प्रख्यात संगीतकार
ए.आर.रहमान के पिता का भी
देहांत बचपन मे हो गया था।

9. मुझे बचपन से परिवार की
जिम्मेदारी उठानी पङी…
लता मंगेशकर को भी
बचपन से परिवार की जिम्मेदारी
उठानी पङी थी।

10. मेरी लंबाई बहुत कम है…
सचिन तेंदुलकर की भी
लंबाई कम है।

आज आप जहाँ भी है,
या कल जहाँ भी होगे।
इसके लिए आप किसी और को
जिम्मेदार नही ठहरा सकते।
इसलिए आज चुनाव करिये,
सफलता और सपने चाहिए
या खोखले बहाने।

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– कुछ उपयोगी पोस्ट सफल जीवन से संबंधित –

* विचारों की शक्ति-(The Power of Thoughts)

KMSRAJ51 के महान विचार हिंदी में।

* खुश रहने के तरीके हिन्दी में।

* अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

* सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र 

* चांदी की छड़ी।

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भावुकता और सतर्कता में संतुलन की आवश्यकता है और यह संतुलन ध्यान से आता है।

A balance between sensitivity and sensibility is required and this balance comes from meditation.

~Sri Sri Ravi Shankar Ji

निश्चय ही आप विजयी होंगे, यदि आप अपनी दुर्बलता (Weakness) को अपनी ताकत में तब्दील करना सीख लें।

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”

 ~KMSRAJ51

“अपने लक्ष्य को इतना महान बना दो, की व्यर्थ के लीये समय ही ना बचे” -Kmsraj51

 ~KMSRAJ51

 

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र-स्वयं से वार्तालाप(बातचीत)”

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In-English…..

Purity is the foundation of true peace & happiness,

It is your most valuable Property in your life,

Preserve it at any cast. !!

In-Hindi…..

पवित्रता सच शांति और खुशी का आधार है.

यह आपके जीवन में सबसे मूल्यवान संपत्ति है.

यह किसी भी कलाकार की रक्षा करता है!!

~KMSRAJ51

“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought to life by. By doing this you Recognize hidden within the buraiyaen solar radiation, and encourage good solar radiation to become themselves.

किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए हिम्मत और उमंग-उत्साह बहुत जरूरी है।

जहाँ उमंग-उत्साह नहीं होता वहाँ थकावट होती है और थका हुआ कभी सफल नहीं होता।

 ~KMSRAJ51

अगर जीवन में सफल हाेना हैं, ताे कभी भी काेई भी कार्य करें ताे पुरें मन से करे।

जीवन में सफलता आपकाे देर से ही सही लेकिन सफलता आपकाे जरुर मिलेगी॥

 ~KMSRAJ51

जिनके संकल्प में दृढ़ता की शक्ति है, उनके लिए हर कार्य सम्भव है।

 ~KMSRAJ51

जीवन में सदैव शांत मन से साेंच समझ़ कर हीं काेई निर्णय लें।

और जाे निर्णय एकबार लें उसका जीवन में दृढ़ता से पालन करें।

 ~KMSRAJ51

जाे आपका आैर आपके समय के वैल्यू काे ना समझे।

उसके लिए कभी भी कार्य (Work) ना कराे॥

 ~KMSRAJ51

मनुष्य का सारा कैरेक्टर विकारों ने बिगाड़ा है।

आत्मा रूपी पुरूष को श्रेष्ठ बनाने वाले ही सच्चे पुरूषार्थी हैं।

सबसे बड़े ज्ञानी वह हैं जो आत्म-अभिमानी रहते हैं।

 ~KMSRAJ51

“अपने लक्ष्य को इतना महान बना दो, की व्यर्थ के लीये समय ही ना बचे”

 ~KMSRAJ51

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं,

ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”

~KMSRAJ51

जीवन मंदिर सा पावन हाे, बाताें में सुंदर सावन हाे।

स्वाथ॔ ना भटके पास ज़रा भी, हर दिन मानो वृंदावन हाे॥

~KMSRAJ51

“पहचान बनानी है तो कुछ अलग कीजिए। जब तक दूसरों से डिफरेंट और अच्छा नहीं करेंगे, तब तक आगे बढ़ना मुश्किल। डिफरेंट करने से रिस्क तो होता है पर कंपीटिशन भी तो कम रहता है।”

~KMSRAJ51

“सफलता हासिल करनी है तो शुरू से ही लक्ष्य निर्धारित कीजिए। सपना जरूर देखिए, क्योंकि इनके बिना हमें मालूम कैसे होगा कि हमारी मंजिल क्या है।”

~KMSRAJ51

“अपने कीमती समय से थोड़ा समय अपने परिवार के लिये भी निकालिये, क्योंकि शायद जब आपके पास समय होगा तब, आपके पास ये खूबसूरत सा परिवार नहीं होगा।”

~KMSRAJ51

निश्चय ही आप विजयी होंगे, यदि आप अपनी दुर्बलता (Weakness) को अपनी ताकत में तब्दील करना सीख लें।

~KMSRAJ51

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(तू ना हो निराश कभी मन से” किताब से)

Coming soon book (जल्द ही आ रहा किताब)…..

“तू ना हो निराश कभी मन से”

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“तू ना हो निराश कभी मन से”

 

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माँ से बढ़कर इस संसार में कोई और नहीं।

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maa

माँ से बढ़कर इस संसार में कोई और नहीं। 

माँ से बढ़कर इस संसार में कोई और नहीं।

बिना बताए जाे हमारे सभी दुःख-दर्द काे जान जाती है, ओ प्रिय मां ही हाे सकती हैं, और काेई नहीं। 

स्वामी विवेकानंद जी से एक जिज्ञासु ने प्रश्न किया- माँ की महिमा संसार में किस कारण से गायी जाती है?

स्वामी विवेकानंद जी मुस्कराए, उस व्यक्ति से बोले, पांच सेर (किलोग्राम) वजन का एक पत्थर ले आओ। 

जब व्यक्ति पत्थर ले आया तो स्वामी विवेकानंद जी ने उससे कहा, “अब इस पत्थर को किसी कपडे में लपेटकर अपने पेट पर बाँध लो और चौबीस घंटे बाद मेरे पास आओ तो मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा।

स्वामी विवेकानंद जी के आदेशानुसार उस व्यक्ति ने पत्थर को अपने पेट पर बाँध लिया और चला गया।

पत्थर बंधे हुए दिनभर वो अपना कार्य करता रहा, किन्तु हर छण उसे परेशानी और थकान महसूस हुई। शाम होते-होते पत्थर का बोझ संभाले हुए चलना फिरना उसके लिए असह्य हो उठा।

थका मांदा वह स्वामी विवेकानंद जी के पास पंहुचा और बोला- “मै इस पत्थर को अब और अधिक देर तक बांधे नहीं रख सकूँगा।”

एक प्रश्न का उत्तर पाने क लिए मैं इतनी कड़ी सजा नहीं भुगत सकता।

स्वामी विवेकानंद जी मुस्कुराते हुए बोले – पेट पर इस पत्थर का बोझ तुमसे कुछ घंटे भी नहीं उठाया गया और माँ अपने गर्भ में पलने वाले शिशु को पूरे नौ (9 Month) माह तक ढ़ोती है और ग्रहस्थी का सारा कार्य भी करती है।

इस संसार में माँ के सिवा कोई और इतना धैर्यवान और सहनशील नहीं है, इसलिए माँ से बढ़ कर इस संसार में कोई और नहीं।

माँ की तुलना इस दुनिया में किसी से भी नहीं की जा सकती।

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“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”

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किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए हिम्मत और उमंग-उत्साह बहुत जरूरी है।

जहाँ उमंग-उत्साह नहीं होता वहाँ थकावट होती है और थका हुआ कभी सफल नहीं होता।

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किसी भी इंसान को बर्बाद कर सकते हैं ये तीन काम।

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श्री राम चरित मानस-KMSRAJ51

श्री राम चरित मानस।

सभी लोगों में अलग-अलग गुण-दोष होते हैं। गुण व्यक्ति को सुख और समृद्धि प्रदान करते हैं, जबकि दोष (बुराइयां या गलत काम) व्यक्ति को दुख और परेशानियों का सामना करवाते हैं। श्रीरामचरित मानस में तीन ऐसे काम बताए गए हैं जो किसी भी पुरुष को बर्बाद कर सकते हैं। यहां जानिए ये तीन काम कौन-कौन से हैं और किस प्रकार पनपते हैं… इनसे किस प्रकार बचा जा सकता है…

श्रीरामचरित मानस के अयोध्या काण्ड में श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं कि-

तात तीनि अति प्रबल खल काम क्रोध अरु लोभ।
मुनि बिग्यान धाम मन करहिं निमिष महुँ छोभ।।
इस दोहे में श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं कि काम, क्रोध और लोभ- ये तीन किसी भी इंसान के लिए प्रबल शत्रु हैं। ये ही सबसे बड़ी बुराइयां हैं जो श्रेष्ठ और ज्ञान-विज्ञान के जानकार मुनियों को भी पलभर में ही बर्बाद कर सकती हैं। श्रीराम कहते हैं कि किसी भी श्रेष्ठ पुरुष के मन में काम भावना स्त्रियों को देखते ही पनप सकती है। कामदेव को सिर्फ स्त्रियों का ही बल प्राप्त है।
जानिए कैसे पनपती हैं ये तीन बुराइयां
श्रीराम लक्षण से कहते हैं कि-
लोभ कें इच्छा दंभ बल काम कें केवल नारि।
क्रोध कें परुष बचन बल मुनिबर कहहिं बिचारि।।
इस दोहे में श्रीराम ने बताया है कि लोभ यानी लालच, इच्छाओं और घमंड के कारण पनपता है। किसी भी पुरुष के मन में जब तक असीमित इच्छाएं रहती हैं, जब तक अलग-अलग सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए मन सोचता रहता है, तब तक लोभ से मुक्ति नहीं मिल सकती है। अपनी धन-संपत्ति के कारण ही व्यक्ति के मन में घमंड समा जाता है। इसी घमंड को बनाए रखने के लिए पुरुष लोभ वश और अधिक धन प्राप्त करने के लिए प्रयास करते रहता है। लोभ वश होकर व्यक्ति सही और गलत काम का भेद भी भूल जाता है। अत: इस बुराई से कोई भी पुरुष बर्बाद हो जाता है।
काम को है केवल स्त्री का बल
श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं कि काम वासना भी बहुत बड़ी बुराई है। इस बुराई में फंसकर बड़े-बड़े ज्ञानी-विद्वान भी नष्ट हो गए हैं। कामदेव के लिए सिर्फ स्त्री ही सबसे शक्तिशाली शस्त्र है। इसी शस्त्र से कामदेव ने कई बार ऋषि-मुनियों की तपस्या को भी खंडित किया है। इससे बुराई से बचने का सिर्फ एक ही उपाय है और वह है भगवान की भक्ति में मन लगाना। जो लोग भगवान की भक्ति में मन लगा लेते हैं, वे काम वासना पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
आज के समय में इस बुराई के कारण काफी लोग परेशानियों का सामना कर रहे हैं। कई लोगों का जीवन बर्बाद हो चुका है। अत: किसी भी पुरुष के लिए काम भावना पर नियंत्रण रखना ही सबसे श्रेष्ठ और कल्याणकारी उपाय है।
क्रोध को कठोर वाणी का बल प्राप्त है
क्रोध को इंसान का सबसे बड़ा शत्रु माना जाता है। क्रोध के आवेश में व्यक्ति अपनी वाणी पर नियंत्रण नहीं रख पाता है और कठोर शब्दों का प्रयोग कर बैठता है। इन शब्दों से सामने वाले व्यक्ति के मन को ठेस भी पहुंचती हैं और जब क्रोध शांत होता है तो व्यक्ति स्वयं भी पछताता है। अत: क्रोध को नियंत्रित करना चाहिए। ऐसा कहा जाता है वाणी से सीधे मन पर चोट लगती है और इसी कारण आपसी रिश्तों में भी तनाव उत्पन्न हो जाता है। मित्र, शत्रु बन जाते हैं।
इन बुराइयों के संबंध में शंकर जी पार्वती जी से कहते हैं कि-
क्रोध मनोज लोभ मद माया। छूटहिं सकल राम की दाया।।
सो नर इंद्रजाल नहिं भूला। जा पर होइ सो नट अनुकूला।।
शंकर जी कहते हैं कि क्रोध, काम, लोभ, मद और माया- ये सभी दोष श्रीरामजी की कृपा से दूर हो सकते हैं। श्रीराम जिन लोगों पर प्रसन्न हो जाते हैं, वे इंद्रजाल यानी माया से प्रभावित नहीं होते हैं। अत: इन बुराइयों से बचने के लिए व्यक्ति को श्रीरामजी की भक्ति में ही मन लगाए रखना चाहिए। श्रीराम की भक्ति भी सभी सुखों को देने वाली है और कल्याण करने वाली है।

लेख- श्री राम चरित मानस से

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सदा खुश रहना और खुशी बांटना-यही सबसे बड़ा शान है।

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73 Motivational Quotes in Hindi

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1. आसक्ति का त्याग करते हुए सिद्बि और असिद्धि में समान बुद्धि वाला होकर कर्म करना चाहिए। समता का नाम ही योग है।

गीता

2. समानता की बात तो बहुत से लोग करते हैं, लेकिन जब उसका अवसर आता है तो खामोश रह जाते हैं।

प्रेमचंद

3. समानता का बर्ताव ऐसा होना चाहिए कि नीचे वाले को उसकी खबर भी न हो।

महात्मा गांधी

4. पूरी तरह से समता आए बिना कोई भी सिद्ध योगी, सिद्ध भक्त या सिद्ध ज्ञानी नहीं समझा जा सकता।

अज्ञात

5. बड़ों की कुछ समता हम विनीत होकर ही पाते हैं।

रवींद्रनाथ

6. मनुष्य के सारे व्यवहारों में ज्वार भाटा का सा उतार चढ़ाव होता है। यदि मनुष्य बाढ़ को पकड़े तो भाग्य की ड्योढ़ी पर पहुंच जाए।

शेक्सपियर

7. मनुष्य के लिए जीवन में सफलता का रहस्य हर आने वाले अवसर के लिए तैयार रहना है।

डिजरायली

8. अवसर भी बुद्धिमान के ही पक्ष में लड़ता है, मूर्ख के नहीं।

यूरीपेडीज

9. अवसर बार बार हाथ नहीं लगता। ऐसा मत सोचो कि अवसर तुम्हारा द्वार दोबारा खटखटाएगा।

सफोक्लीज

10. समय और उचित अवसर पर बोला गया एक शब्द युगों की बात है।

कार्लाइल

11. अवसर के अनुकूल आचरण हमें कहीं का कहीं पहुंचा देता है।

चेखव

12. संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं।

कल्हण

13. कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है।

वेदव्यास

14. जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है।

हजारी प्रसाद द्विवेदी

15. नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्यत होता है।

नारायण पंडित

16. जो अत्याचारी के प्रति विद्रोह करता है, उसका साथ सब देना चाहते हैं।

माखनलाल चतुर्वेदी

17. अत्याचार जब निरंकुश होकर नग्न तांडव करने लगता है, तब बलिवेदी पर चढ़ने को तैयार होने के सिवा और कोई भी उपाय नहीं रह जाता।

हिंदू पंच

18. अनाचार और अत्याचार सिर झुकाकर वे ही सहन करते हैं जिनमें नैतिकता और चरित्र का अभाव हुआ करता है।

एक कहावत

19. अन्यायी और अत्याचारी की करतूतें मनुष्यता के नाम खुली चुनौती हैं जिसे वीर पुरुषों को स्वीकार करना ही चाहिए।

श्रीराम शर्मा आचार्य

20. कायर लोग अपने जीवन काल में कई बार मरते हैं, लेकिन वीर लोग केवल एक बार मरते हैं।

शेक्सपियर

21. संसार में कायरों के लिए कहीं स्थान नहीं है। हम सबको किसी न किसी प्रकार कठोर परिश्रम करने, दुख उठाने और मरने के लिए तैयार रहना चाहिए।

स्टीवेंसन

22. कायर व्यक्ति जीवन में हरदम चापलूसी करता रह जाता है और निर्भीक अपने श्रम के बल पर अपनी जगह बना लेने में सफल हो जाता है।

अस्त्रोवस्की

23. चुनौतियों को स्वीकार करने वाले ही असली बहादुर होते हैं।

लू शुन

24. स्वाधीनता ही स्वाधीनता का अंत नहीं है। धर्म , शांति और काव्य – आनंद , यह सब और भी बड़े हैं। इनकेविकास के लिए स्वाधीनता चाहिए , नहीं तो उसका मूल्य ही क्या है।

शरतचंद्र

25. पराधीनता की विजय से स्वाधीनता की पराजय हजार गुना बेहतर है।

अज्ञात

26. स्वाधीनता पा लेना आसान है , लेकिन उसे बनाए रखना आसान नहीं।

माखनलाल चतुर्वेदी 

27. बंधे बैल और छुटे सांड में बड़ा अंतर है। एक रातिब पाकर भी दुर्बल है , दूसरा घास – पात खाकर ही मस्त होरहा है। स्वाधीनता बड़ी पोषक वस्तु है।
 प्रेमचंद
28. सुधारक चाहे कितना भी श्रेष्ठ पंक्ति का क्यों न हो, जब तक जनता उसे परख नहीं लेगी, उसकी बात नहीं सुनेगी।
 विनोबा भावे
29. उपहास और विरोध तो किसी भी सुधारक के लिए पुरस्कार जैसे हैं।
प्रेमचंद
 
30. जो सुधारक अपने संदेश के अस्वीकार होने पर क्रोधित हो जाता है, उसे सावधानी, प्रतीक्षा और प्रार्थना सीखने के लिए वन में चले जाना चाहिए।
महात्मा गांधी
31. आत्मा को आत्मा की ही आवाज जगा सकती है।
प्रेमचंद
32. परमात्मा की प्रार्थना करने के लिए एकत्र होने वाले लोग हृदय से एक हो जाते हैं।
विनोबा
33. निर्मल अंत:करण को जिस समय जो प्रतीत हो वही सत्य है। उस पर दृढ़ रहने से शुद्ध सत्य की प्राप्ति हो जाती है।
महात्मा गांधी
34. जिस प्रकार दीपक दूसरी वस्तुओं को प्रकाशित करता है और अपने स्वरूप को भी प्रकाशित करता है, उसी प्रकार अंत:करण दूसरी वस्तुओं को भी प्रत्यक्ष करता है और अपने आप को भी।
संपूर्णानंद
35. संदेह की स्थिति में सज्जनों के अंत:करण की प्रवृत्ति ही प्रमाण होती है।
कालिदास

36. मानव से संबंधित सभी वस्तुएं यदि उन्नति नहीं करतीं तो उनका ह्रास होने लगता है।

गिबन
37. केवल वही व्यक्ति जीवन में उन्नति कर रहा है जिसका हृदय कोमल , खून गर्म , दिमाग तेज होता जाता है औरजिसके मन को शांति मिलती जाती है।
रस्किन
38. यदि समाज के हर वर्ग तक उन्नति का भाग नहीं पहुंचता तो समझ लीजिए जरूर कहीं कुछ गड़बड़ है।
सेनेका

39. स्त्री की उन्नति या अवनति पर ही राष्ट्र की उन्नति या अवनति निर्भर करती है।

अरस्तू

40. प्रकृति अपनी उन्नति और विकास में रुकना नहीं जानती। वह अपना अभिशाप प्रत्येक अकर्मण्यता पर लगाती है।
गेटे

41. हमारे यथार्थ शत्रु तीन हैं-दरिद्रता, रोग और मूर्खता। वे वीर धन्य हैं जो इन तीनोें के विरुद्ध युद्ध छेड़ते हैं। वे मानवता के यथार्थ के उपासक और हमारे सच्चे सेनानायक हैं।

रामवृक्ष बेनीपुरी

42. छोटे शत्रु को छोटे उपाय करके ही काबू मेें लाना चाहिए। जैसे चूहे को सिंह नहीं बिल्ली ही मारती है।

माघ

43. अपने शत्रु को कभी छोटा मत समझो। देखो, तिनकोें के बड़े ढेर को आग की छोटी सी चिंगारी भस्म कर देती है।
वृंद

44. आपके पास पचास मित्र हैं, यह अधिक नहीं है। आपके पास एक शत्रु है, यह बहुत अधिक है।
एक कहावत

45. विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं।

शूद्रक

46. चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला करता।
कालिदास

47. संपूर्ण कला केवल प्रकृति का ही अनुसरण है।

 सेनेका

48. मानव की बहुमुखी भावनाओं का प्रबल प्रवाह जब रोके नहीं रुकता है, तभी वह कला के रूप में फूट पड़ता है।

 रस्किन

49. कला विचार को मूर्ति में परिणित करती है।

 एमर्सन

50. दुनिया में दो ही ताकतें हैं, तलवार और कलम। और अंत में तलवार हमेशा कलम से हारती है।

 नेपोलियन

51. कला प्रकृति द्वारा देखा हुआ जीवन है।

 एमिल जोला

52. धर्म का उपदेश सुनने से कोई धर्मात्मा नहीं हो जाता, किंतु उपदेशानुसार व्यवहार करने से मनुष्य धर्मात्मा हो सकता है।

अज्ञात

53. फल मनुष्य के कर्म के अधीन है , बुद्धि कर्म के अनुसार आगे बढ़ने वाली है , फिर भी विद्वान और महात्मालोग अच्छी तरह से विचार कर ही कोई कर्म करते हैं।

चाणक्य

54. अधिक बलवान तो वे ही होते हैं जिनके पास बुद्धि बल होता है। जिनमें केवल शारीरिक बल होता है, वे वास्तविक बलवान नहीं होते।

वेदव्यास

55. सच्चा बलवान तो वही होता है, जिसने अपने मन पर पूरी तरह से नियंत्रण कर लिया हो।

विनोबा भावे

56. इच्छाओं के सामने आते ही बड़ी से बड़ी प्रतिज्ञाएं भी ताक पर धरी रह जाती हैं। समस्त भय और चिंता इच्छाओं का परिणाम है।

स्वामी रामकृष्ण

57. यदि हमारी इच्छाशक्ति ही कमजोर होने लगेगी तो मानसिक शक्तियां भी उसी तरह काम करने लगेंगी।

महात्मा गांधी

58. काम आरंभ करने मेें देर न करो। और अगर काम शुरू कर दिया है तो उसे पूरा कर के ही छोड़ो।
विनोबा भावे

59. सच्चे इंसान द्वारा किए गए कर्म न सिर्फ खुशबू देते हैं बल्कि दूसरोें को खुश भी करते हैं।
विष्णु प्रभाकर

60. चरित्र संपत्ति है। यह संपत्ति में सबसे उत्तम है।

स्माइल्स

61. चरित्र जीवन में शासन करने वाला तत्व है और इसका स्थान प्रतिभा से ऊंचा है।
फ्रेडरिक सांडर्स

62. गुण एकांत में अच्छी तरह विकसित होता है। चरित्र का निर्माण संसार के भीषण कोलाहल में होता है।

गेटे

63. चरित्र एक वृक्ष के समान है और ख्याति उसकी छाया है। छाया वही है जो हम उसके बारे में सोचते हैं, परंतु वृक्ष वास्तविक वस्तु है।

लिंकन

64. चरित्र एक ऐसा हीरा है जो हर पत्थर को घिस सकता है।

बर्टल

65. चोरी से कोई धनवान नहीं बन सकता, दान से कोई कंगाल नहीं हो सकता। थोड़ा सा झूठ भी कभी छिप नहीं सकता। यदि तुम सच बोलोगे तो सारी प्रकृति और सब जीव तुम्हारी सहायता करेंगे। चरित्र ही मनुष्य की पूंजी है।

एमर् सन

66. संसार में ऐसा कोई नहीं हुआ है जो मनुष्य की आशा का पेट भर सके। पुरुष की आशा समुद्र के समान है, वह कभी भरती ही नहीं।
वेदव्यास

67. आत्मविश्वास सरीखा दूसरा मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की प्रथम सीढ़ी है।

स्वामी विवेकानंद

68. केवल आत्मज्ञान ही ऐसा है जो हमें सब जरूरतों से परे कर सकता है।

स्वामी रामतीरथ

69. विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है।
रवींद्रनाथ

70. विश्वास के बिना काम करना सतहविहीन गड्ढे में पहुंचने के प्रयत्नों के समान है।
महात्मा गांधी

71. यदि तुम भूख से पीडि़त किसी कुत्ते को उठा लो और उसकी देखभाल करके उसे खुश करो तो वह तुम्हें कभी नहीं काटेगा। मनुष्य और कुत्ते में यही प्रधान अंतर है।

मार्क ट्वेन

72. कृतज्ञ और प्रसन्न हृदय से की गई पूजा ईश्वर को सबसे अधिक प्रिय है।

प्लूटार्क

73. कृतज्ञता मित्रता को चिरस्थायी रखती है और नए मित्र बनाती है।

एक कहावत

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आपका सबका प्रिय दोस्त,

Krishna Mohan Singh(KMS)
Head Editor, Founder & CEO
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सदा खुश रहना और खुशी बांटना-यही सबसे बड़ा शान है।

Note::-

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– कुछ उपयोगी पोस्ट सफल जीवन से संबंधित –

* विचारों की शक्ति-(The Power of Thoughts)

KMSRAJ51 के महान विचार हिंदी में।

* खुश रहने के तरीके हिन्दी में।

* अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

* सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र 

* चांदी की छड़ी।

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“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”

-KMSRAJ51

किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए हिम्मत और उमंग-उत्साह बहुत जरूरी है।

जहाँ उमंग-उत्साह नहीं होता वहाँ थकावट होती है और थका हुआ कभी सफल नहीं होता।

 ~KMSRAJ51

 

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अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

Kmsraj51 की कलम से…..

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अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

भगवान ने भाग्य कि रेखा खिंचने वाली पेंसिल हम सबके हाथाें में दे दिया है। जैसा भी चाहाे भाग्य कि रेखा खिंच लाे।

~Kmsraj51

सफलता का सबसे सरल तरिका है, अपने आंतरिक मन के कमजोर बिंदुआे काे अपने आपसे दुर करें।

~Kmsraj51

जिस कार्य काे करने से आपकाे आंतरिक मन की खुशी मिले उसी कार्य काे करें।

~Kmsraj51

अगर आप अपने कार्य से खुश है, ताे फिर अन्य क्या कहते है, उसकी परवाह ना करें।

~Kmsraj51

:- गहराई से सोचना प्रत्येक शब्द 

मेरे(kmsraj51) कुछ व्यक्तिगत सकारात्मक विचारों का समूह …..

अपनी सोच को हमेशा सकारात्मक रखना …..

हमेशा मन को शांत रखना …..

दिमाग को हमेशा अनुसंधान में लगाये रखना …..

हमेशा (सदैव) अन्य लोगों से अपनी सोच को अलग रखना …..

हमेशा अपनी मन की कमजोरी को दूर रखना …..

हमेशा आंतरिक आत्मा की (आत्मा के अंदर की आवाज) आवाज सुनो …..

हमेशा ईस सूत्र का उपयोग करें …..

….. कोशिश + कोशिश + कोशिश + कोशिश + कोशिश = सफलता

आपके जीवन में हमेशा खुशी मिलेगी …..

Note::-

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खुद को साबित करने के लिए मौका मिलने के आप हकदार हैं। सफलता की नींव आप खुद हैं। 

दूसरे क्या सोच रहे हैं, इस बारे में अनुमान लगाते रहना नकारात्मक सोच की निशानी है।

-Kmsraj51

 

 

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सर्व श्रेष्ठ सम्पत्तिवान काैन?

Kmsraj51 की कलम से…..

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सर्व श्रेष्ठ सम्पत्तिवान काैन?

किसी के पास अगर सिर्फ स्थूल सम्पत्ति है तो भी सदा सन्तुष्ट नहीं रह सकते। स्थूल सम्पत्ति के साथ अगर सर्व गुणों की सम्पत्ति, सर्व शक्तियों की सम्पत्ति और ज्ञान की श्रेष्ठ सम्पत्ति नहीं है तो सन्तुष्टता सदा नहीं रह सकती।  दुनिया वाले सिर्फ स्थूल सम्पत्ति वाले को सम्पत्तिवान समझते हैं।

सर्व श्रेष्ठ सम्पत्तिवान वह हैं जिसके पास स्थूल सम्पत्ति के साथ अगर सर्व गुणों की सम्पत्ति, सर्व शक्तियों की सम्पत्ति और ज्ञान की श्रेष्ठ सम्पत्ति है

वाे ही सर्व श्रेष्ठ सम्पत्तिवान है।

किसी भी मनुष्य की तीन मुख्य-सम्पत्ति (Property)

  1. गुणों की सम्पत्ति,
  2. ज्ञान की श्रेष्ठ सम्पत्ति,
  3. आत्मिक शक्तियों की सम्पत्ति,

ये तीनाे शक्तिया जिस मनुष्य के पास “न” हाे, सिर्फ स्थूल सम्पत्ति है तो भी सदा सन्तुष्ट नहीं रह सकता।

कर्म-अकर्म-विकर्म की गति को जान विकर्मों से बचना ही ज्ञान हाेने का बाेध कराता है।

साभार-

“तू ना हो निराश कभी मन से” किताब से

Note::-

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Coming soon book (जल्द ही आ रहा किताब)…..

“तू ना हो निराश कभी मन से”

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“अपने लक्ष्य को इतना महान बना दो, की व्यर्थ के लीये समय ही ना बचे” -Kmsraj51 

खुद को साबित करने के लिए मौका मिलने के आप हकदार हैं। सफलता की नींव आप खुद हैं। 

दूसरे क्या सोच रहे हैं, इस बारे में अनुमान लगाते रहना नकारात्मक सोच की निशानी है।

 

 

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ज़िन्दगी…..

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कुछ ऐसी ज़िन्दगी मिली है 

कि मौत से अब डर ही नहीं लगता 

दोनों तो एक सी है 

एक एक बार मारती है 

और दूसरी 

हर दिन बार बार मारती है 

ये कैसी रात मिली है 

कि कोई चाँद ही नहीं निकलता 

बस अँधेरा छाया रहता है 

और सुना है उस अँधेरे में 

कुछ लोग भी जीते है ….

tarun

Post:- Share by Mr. Tarun

तरुण जी एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं कभी-२ कविताएं भी लिख लिया करते हैं।

Tarun bolg:- http://tarun-world.blogspot.in/

मैं श्री तरुण जी का दिल से आभारी हूँ. हिंदी कविता Share करने के लिए।

Note::-

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“तू ना हो निराश कभी मन से”

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आप कुछ भी कर सकते हैं, स्वयं पर विश्वास करना सीखें।

-कृष्ण मोहन सिंह ५१

 

सच्चें मन से अगर कुछ करने की ठान लाे, ताे आपकाे सभी काम में सफलता मिल जाती हैं।

जीवन में जाे भी काम कराें पुरे मन से कराें, ताे सफलता आपकाे जरूर मिलेगी।

-कृष्ण मोहन सिंह ५१

“अपने लक्ष्य को इतना महान बना दो, की व्यर्थ के लिए समय ही ना बचे” -Kmsraj51 

 

 

 

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अर्श रोग (बवासीर)-Piles – का आयुर्वेदिक उपचार

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अर्श रोग (बवासीर)-Piles 

Piles -अर्श रोग - बवासीर

अर्श रोग (बवासीर)-Piles

बवासीर गुदा मार्ग की बीमारी है । यह मुख्यतः दो प्रकार की होती है — खूनी बवासीर और बादी बवासीर। इस रोग के होने का मुख्य कारण ” कोष्ठबद्धता ” या ”कब्ज़ ” है। कब्ज़ के कारण मल अधिक शुष्क व कठोर हो जाता है और मल निस्तारण हेतु अधिक जोर लगाने के कारण बवासीर रोग हो जाता है। यदि मल के साथ बूंद -बूंद कर खून आए तो उसे खूनी तथा यदि मलद्वार पर अथवा मलद्वार में सूजन मटर या अंगूर के दाने के समान हो और मल के साथ खून न आए तो उसे बादी बवासीर कहते हैं। अर्श रोग में मस्सों में सूजन तथा जलन होने पर रोगी को अधिक पीड़ा होती है।

बवासीर का विभिन्न औषधियों द्वारा उपचार —

१- जीरा – एक ग्राम तथा पिप्पली का चूर्ण आधा ग्राम को सेंधा नमक मिलाकर छाछ के साथ प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से बवासीर ठीक होती है।

२- जामुन की गुठली और आम की गुठली के अंदर का भाग सुखाकर इसको मिलाकर चूर्ण बना लें | इस चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में हल्के गर्म पानी या छाछ के साथ सेवन से खूनी बवासीर में लाभ होता है। 

३- पके अमरुद खाने से पेट की कब्ज़ दूर होती है और बवासीर रोग ठीक होता है।

४- बेल की गिरी के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर , ४ ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है।

५- खूनी बवासीर में देसी गुलाब के तीन ताज़ा फूलों को मिश्री मिलाकर सेवन करने से आराम आता है।

६ – जीरा और मिश्री मिलकर पीस लें। इसे पानी के साथ खाने से बवासीर (अर्श ) के दर्द में आराम रहता है।

७- चौथाई चम्मच दालचीनी चूर्ण एक चम्मच शहद में मिलाकर प्रतिदिन एक बार लेना चाहिए। इससे बवासीर नष्ट हो जाती है।

Post inspired by:

Poojya Acharya Bal Krishan Ji Maharaj-KMSRAJ51

पूज्य आचार्य बाल कृष्ण जी महाराज

मैं श्री आचार्य बाल कृष्ण जी महाराज का बहुत आभारी हूँ!!

आपको दिल से शुक्रिया;

Ayurveda Product Available on;-

http://patanjaliayurved.org/

पढ़ेंविमल गांधी जी कि शिक्षाप्रद कविताओं का विशाल संग्रह।

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जैसे शरीर के लिए भोजन जरूरी है वैसे ही मस्तिष्क के लिए भी सकारात्मक ज्ञान रुपी भोजन जरूरी हैं। ~ कृष्ण मोहन सिंह(KMS)

 ~Kmsraj51

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– कुछ उपयोगी पोस्ट सफल जीवन से संबंधित –

* विचारों की शक्ति-(The Power of Thoughts)

KMSRAJ51 के महान विचार हिंदी में।

* खुश रहने के तरीके हिन्दी में।

* अपनी खुद की किस्मत बनाओ।

* सकारात्‍मक सोच है जीवन का सक्‍सेस मंत्र 

* चांदी की छड़ी।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought tolife by. By doing this you Recognize hidden within the buraiyaensolar radiation, and encourage good solar radiation to becomethemselves.

 ~KMSRAJ51 (“तू ना हो निराश कभी मन से” किताब से)

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”

-KMSRAJ51

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पवित्र विचार-

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Kmsraj51 – Motivational Thoughts 

अपनी साेंच काे वृहद बनाआे।

ये मत साेंचाे की कल तक तुम्हारे पास क्या था या तुम कैसे थें,

मगर तुम यह जरूर साेंचाे की आज तुम क्या कर रहें हाे, आैर अपने भविष्य के लिए क्या कर रहें हाे।

ये साेंचाे की आज तुम्हारे पास क्या हैं, अपना एक सटिक लक्ष्य बनाआेे।

“अपने लक्ष्य को इतना महान बना दो, की व्यर्थ के लिए समय ही ना बचे” -Kmsraj51 

सच्चें मन से अगर कुछ करने की ठान लाे, ताे आपकाे सभी काम में सफलता मिल जाती हैं।

जीवन में जाे भी काम कराें पुरे मन से कराें, ताे सफलता आपकाे जरूर मिलेगी।

आपका दोस्त

कृष्ण मोहन सिंह ५१

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How Often And Why Do I Need To Meditate

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMS

How Often And Why Do I Need To Meditate (Part 1)? 

Mera Baba

मेरा बाबा

As with anything else, the more we practice meditation, the more we feel the benefit of what we are doing. We do need to practice meditation regularly because the habits of:

i. identifying with our physical form,

ii. succumbing to mental and emotional negativity (in the form of waste and negative thoughts) along with negativity in words and actions,

iii. becoming attached to the physical as well as the non-physical, and

iv. being dependent upon the experience of physical stimulation of any sort (from e.g. food, movies, people, sports etc.) for happiness are extremely deep.

These habits have deepened over a period of many many births, because of repeating them regularly, due to a lack of spiritual awareness. As a result, in the present moment also we regularly and quite easily slip into these four habits.

Message

Truth is effective when it is combined with tact.

Projection: I usually react when something goes wrong. In the heat of the moment I give corrections and others don’t seem to understand. Then I tend to become confused, as it is difficult to make a choice whether to leave the situation as it is or to prove my point to the others.

Solution: Unless truth is combined with tact I cannot make people realise their mistakes. When I find something going wrong, I need to wait for the right time for saying what I have to. I also need to tell it in a way that the other person can understand. Only then will my words have their impact on others.

 

How Often And Why Do I Need To Meditate (Part 2)?

As explained yesterday, we regularly and quite easily slip into four main negative habits. So meditation is not only sitting in a quiet corner, and connecting with the self and the Supreme, at a couple of fixed times during the day, but it is also the way to gently remember and remind ourselves, many times in a day, that we as well as others, are souls or spiritual beings not physical beings, by detaching ourselves from actions and also while being involved in actions. These reminders given to the self over a period of time become natural and prevent us from succumbing to these four habits. Given below is a basic meditation, which you could use to remind yourself regularly during the day:

I have a body but this body is not me…
I have thoughts but these thoughts are not me …
I have feelings but these feelings are not me …
I have attitudes but these attitudes are not me …
I have emotions but these emotions are not me …
I have beliefs but these beliefs are not me …
I perform many actions through my sense organs, but these sense organs are not me…
I play many roles but I am not my roles…
I experience joy or sorrow through my sense organs, but these experiences are not me …
I am a soul – a being of energy, which is neither created nor can be destroyed, and my original and true nature is one of peace, love, joy and power…

Message

True service is to serve equally through thoughts, words and actions.

Projection: Whenever I think of serving others, I think of only serving through actions or maybe even through words. I never think of serving through my thoughts too. So sometimes I do find that my service is not complete and doesn’t have a true impact.

Solution: Before I can think of helping someone through words or through actions, I need to make sure I have good wishes for them. Only when my feelings for them are full of positive and powerful wishes can my service create its impact on others.

In Spiritual Service,
Brahma Kumaris

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“अपने लक्ष्य को इतना महान बना दो, की व्यर्थ के लीये समय ही ना बचे” -Kmsraj51 

अगर जीवन में सफल हाेना हैं, ताे कभी भी काेई भी कार्य करें ताे पुरें मन से करे।

जीवन में सफलता आपकाे देर से ही सही लेकिन सफलता आपकाे जरुर मिलेगी॥

 ~KMSRAJ51

CYMT-T N H N K M S-KMSRAJ51

 

 

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A Gauge To Check How Spiritually Powerful Am I

Kmsraj51 की कलम से…..

CYMT-KMS

A Gauge To Check How Spiritually Powerful Am I

Mera Baba

मेरा बाबा

The territory of spiritual understanding is both infinite and unlimited. Simply put, spirituality can be defined as the rediscovery of the deepest values, virtues, positive sanskars or characteristics of the human soul. The innate attributes or characteristics of the soul (peace, love, truth, purity and happiness) give the soul its power. The power of the soul cannot be quantified either on a physical or a non-physical level. The power can only be experienced and revealed to the self and others through the ‘quality’ of the above characteristics and the different forms they are given by the soul itself.

For a practitioner of meditation, whether a beginner or an experienced once, patience and a gentle persistence guarantee two aspects of self-progress (in varying degrees in different souls):

1. rediscovery and revelation or expression of one’s spiritual attributes and secondly, but very importantly

2. the ability to give them an appropriate form internally or externally, depending on the requirement of the situation.

A particular soul might be good at both aspects, another one very good at the first aspect and not so good at the second one. When we choose to be peaceful, we reconnect with our inner peace and create the spiritual form of peace within our self. This form created is different for different souls, depending on how powerful the soul is. So what is the quality of that form, what is the quality of our peace? Is it a superficial quality that is easily disturbed with unexpected changes in our external circumstances, or is it a deep peace which is stable even in the face of fierce criticism from others? Only we know the quality of our spiritual forms.

Message

The one who recognises the needs of others is the one who gives real happiness.

Projection: I usually make a lot of effort to give in some way or the other to those around me. Yet I sometimes find that people are not able to be happy with me. What I give is usually based on what I feel the other person needs. I continue to give in this way and begin to expect from others too, and find myself disappointed when I am not appreciated.

Solution: I need to be a giver in the true sense. Before I think of giving, I need to recognise the needs of others. The more I keep myself tuned to this I will enjoy what I am giving and the impact of it will be there on the others too. I will then find that others are pleased with me too.

In Spiritual Service,
Brahma Kumaris

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मित्रता दिवस (एक वास्तविक दोस्त)।

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Kmsraj51-CYMT-JUNE-15

 एक वास्तविक दोस्त। 

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मित्रता दिवस

एक वास्तविक दोस्त का स्वभाव, चरित्र-व्यवहार, मनोवृत्ति या मनोभाव कैसा होना चाहिए?

दोस्तों,

जहाँ तक मेरा मानना हैं कि एक अच्छें और सच्चें दोस्त में ये सारे गुण़ (स्वभाव, चरित्र-व्यवहार, मनोवृत्ति या मनोभाव etc.) निहीत होंगें।

एक सच्चें दोस्त का व्यवहार निष्कपट होंगा हमेशा हमारे साथ।

 

५० दोस्त बनाना आसान हैं, लेकिन एक हीं दोस्त से ५० वर्षों तक सच्चें मन से दोस्ती निभाना

कठिन लगता हैं आजकल सबको॥

 

दोस्ती में स्वार्थी स्वभाव नहीं होना चाहिए, स्वार्थी दोस्ती लंबे समय तक नहीं टिकती हैं।

जिस दोस्ती में निस्वार्थ भाव होगा वहीं दोस्ती लंबे समय तक चलती हैं॥

आज कि आधुनिकता भरें युग में सच्ची दोस्ती के गुणों को लोग भुल ही गये हैं।

दोस्तो के समस्याओं को सुनना और समझना चाहिए, और जहाँ तक संभव हो सके मदद करना चाहिए॥

जब याद का किस्सा खोलूं तो, 

कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं। 

मैं गुजरे पल का सोचूं तो, 

कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं।

जाने कौनसी नगरी में आबाद हैं

जाकर मुद्दत से, मैं देर रात तक जागूं तो

कुछ दोस्त बहुत याद आते है…

 

“ज्ञानी दोस्त जिंदगी का सबसे बड़ा वरदान है।”

“सच्चे मित्र के तीन लक्षण हैं: अहित को रोकना, हित की रक्षा करना और विपत्ति में साथ नहीं छोड़ना।”

“मित्र वह है जो आप के अतीत को समझता हो और आप जैसे हैं वैसे ही आप को स्वीकार करता हो।”

मित्र का सम्मान करो, पीठ पीछे उसकी प्रशंसा करो और आवश्यकता पड़ने पर उसकी सहायता करो।

दोस्त वह है, जो आपको अपनी तरह जीने की पूरी आजादी दे।

सच्चा प्रेम दुर्लभ है, सच्ची मित्रता और भी दुर्लभ है।

कृतज्ञता मित्रता को चिरस्थायी रखती है और नए मित्र बनाती है।

सच्चे मित्र के सामने दुःख आधा और हर्ष दुगुना प्रतीत होता है।

मित्रों के बिना कोई भी जीना पसंद नहीं करेगा, चाहे उसके पास बाकी सब अच्छी चीजें क्यों न हो। 

जो तुम्हें बुराई से बचाता है, नेक राह पर चलाता है और जो मुसीबत के समय तुम्हारा साथ देता है, बस वही मित्र है।

दुनिया की किसी चीज का आनंद परिपूर्ण नहीं होता, जब तक कि वह किसी मित्र के साथ न लिया जाए। 

नेक सबके प्रति रहो, मित्र सर्वोत्तम को ही बनाओ।

मित्र दुःख में राहत है, कठिनाई में पथ-प्रदर्शक है, जीवन की खुशी है, जमीन का खजाना है, मनुष्य के रूप में नेक फरिश्ता है।

मित्रता दो तत्वों से बनी है, एक सच्चाई और दूसरा कोमलता।

Love of friend-kmsraj51

दोस्त का प्यार

कहने को तो बहुत कुछ हैं मेरे दिल में लेकिन कम शब्दों में विराम लगाता हूँ।

आपका 

दोस्त कृष्ण मोहन सिंह51

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* चांदी की छड़ी।

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“सफलता का सबसे बड़ा सूत्र”(KMSRAJ51)

“स्वयं से वार्तालाप(बातचीत) करके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन लाया जा सकता है। ऐसा करके आप अपने भीतर छिपी बुराईयाें(Weakness) काे पहचानते है, और स्वयं काे अच्छा बनने के लिए प्रोत्सािहत करते हैं।”

In English

Amazing changes the conversation yourself can be brought tolife by. By doing this you Recognize hidden within the buraiyaensolar radiation, and encourage good solar radiation to becomethemselves.

 ~KMSRAJ51 (“तू ना हो निराश कभी मन से” किताब से)

“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”

-KMSRAJ51

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माँ के नाम

Kmsraj51 की कलम से…..

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माँ के नाम

बचपन में अच्छी लगे, यौवन में नादान !
आती याद उम्र ढले क्या थी माँ कल्यान !!1!!
करना माँ को खुश अगर कहते लोग तमाम !
रौशन अपने काम से करो पिता का नाम !!2!!
विद्या पाई आपने बने महा विद्वान !
माता पहली गुरु है सबकी ही कल्याण !!3!!
कैसे बचपन कट गया, बिन चिंता कल्यान !
पर्दे पिछे माँ रही, बन मेरा भगवान !!4!!
माता देती सपन है, बच्चो को कल्यान !
उनको करता पूर्ण जो, बनता बही महान !!5!!
बच्चे से पुछो जरा, सबसे अच्छा कौन !
उंगली उठे उधर जिधर, माँ बैठी हो मौन !!6!!
माँ कर देती माफ है, कितने करो गुनाह !
अपने बच्चों के लिये उसका प्रेम अथाह !!7!!
– सरदार कल्याण सिंह

Note::-

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“अपने लक्ष्य को इतना महान बना दो, की व्यर्थ के लीये समय ही ना बचे” -Kmsraj51 

 

 

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अनमोल वचन-A

Kmsraj51 की कलम से…..

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Great Quotes(अनमोल वचन)

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KMSRAJ51

 

  • अपना मूल्य समझो और विश्वास करो कि तुम संसार के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हो।
  • अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है।
  • अपना काम दूसरों पर छोड़ना भी एक तरह से दूसरे दिन काम टालने के समान ही है। ऐसे व्यक्ति का अवसर भी निकल जाता है और उसका काम भी पूरा नहीं हीता।
  • अपना आदर्श उपस्थित करके ही दूसरों को सच्ची शिक्षा दी जा सकती है।
  • अपने व्यवहार में पारदर्शिता लाएँ। अगर आप में कुछ कमियाँ भी हैं, तो उन्हें छिपाएं नहीं; क्योंकि कोई भी पूर्ण नहीं है, सिवाय एक ईश्वर के।
  • अपने हित की अपेक्षा जब परहित को अधिक महत्त्व मिलेगा तभी सच्चा सतयुग प्रकट होगा।
  • अपने दोषों से सावधान रहो; क्योंकि यही ऐसे दुश्मन है, जो छिपकर वार करते हैं।
  • अपने अज्ञान को दूर करके मन-मन्दिर में ज्ञान का दीपक जलाना भगवान की सच्ची पूजा है।
  • अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बढ़कर प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता।
  • अपने कार्यों में व्यवस्था, नियमितता, सुन्दरता, मनोयोग तथा ज़िम्मेदार का ध्यान रखें।
  • अपने जीवन में सत्प्रवृत्तियों को प्रोतसाहन एवं प्रश्रय देने का नाम ही विवेक है। जो इस स्थिति को पा लेते हैं, उन्हीं का मानव जीवन सफल कहा जा सकता है।
  • अपने आपको सुधार लेने पर संसार की हर बुराई सुधर सकती है।
  • अपने आपको जान लेने पर मनुष्य सब कुछ पा सकता है।
  • अपने दोषों की ओर से अनभिज्ञ रहने से बड़ा प्रमाद इस संसार में और कोई दूसरा नहीं हो सकता।
  • अपने आप को बचाने के लिये तर्क-वितर्क करना हर व्यक्ति की आदत है, जैसे क्रोधी व लोभी आदमी भी अपने बचाव में कहता मिलेगा कि, यह सब मैंने तुम्हारे कारण किया है।
  • अपने देश का यह दुर्भाग्य है कि आज़ादी के बाद देश और समाज के लिए नि:स्वार्थ भाव से खपने वाले सृजेताओं की कमी रही है।
  • अपने गुण, कर्म, स्वभाव का शोधन और जीवन विकास के उच्च गुणों का अभ्यास करना ही साधना है।
  • अपने को मनुष्य बनाने का प्रयत्न करो, यदि उसमें सफल हो गये, तो हर काम में सफलता मिलेगी।
  • अपने आप को अधिक समझने व मानने से स्वयं अपना रास्ता बनाने वाली बात है।
  • अपनी कलम सेवा के काम में लगाओ, न कि प्रतिष्ठा व पैसे के लिये। कलम से ही ज्ञान, साहस और त्याग की भावना प्राप्त करें।
  • अपनी स्वंय की आत्मा के उत्थान से लेकर, व्यक्ति विशेष या सार्वजनिक लोकहितार्थ में निष्ठापूर्वक निष्काम भाव आसक्ति को त्याग कर समत्व भाव से किया गया प्रत्येक कर्म यज्ञ है।
  • अपनी आन्तरिक क्षमताओं का पूरा उपयोग करें तो हम पुरुष से महापुरुष, युगपुरुष, मानव से महामानव बन सकते हैं।
  • अपनी दिनचर्या में परमार्थ को स्थान दिये बिना आत्मा का निर्मल और निष्कलंक रहना संभव नहीं।
  • अपनी प्रशंसा आप न करें, यह कार्य आपके सत्कर्म स्वयं करा लेंगे।
  • अपनी विकृत आकांक्षाओं से बढ़कर अकल्याणकारी साथी दुनिया में और कोई दूसरा नहीं।
  • अपनी महान संभावनाओं पर अटूट विश्वास ही सच्ची आस्तिकता है।
  • अपनी भूलों को स्वीकारना उस झाडू के समान है जो गंदगी को साफ़ कर उस स्थान को पहले से अधिक स्वच्छ कर देती है।
  • अपनी शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नहीं होता।
  • अपनी बुद्धि का अभिमान ही शास्त्रों की, सन्तों की बातों को अन्त: करण में टिकने नहीं देता।
  • अपनों के लिये गोली सह सकते हैं, लेकिन बोली नहीं सह सकते। गोली का घाव भर जाता है, पर बोली का नहीं।
  • अपनों व अपने प्रिय से धोखा हो या बीमारी से उठे हों या राजनीति में हार गए हों या श्मशान घर में जाओ; तब जो मन होता है, वैसा मन अगर हमेशा रहे, तो मनुष्य का कल्याण हो जाए।
  • अपनों के चले जाने का दुःख असहनीय होता है, जिसे भुला देना इतना आसान नहीं है; लेकिन ऐसे भी मत खो जाओ कि खुद का भी होश ना रहे।
  • अगर किसी को अपना मित्र बनाना चाहते हो, तो उसके दोषों, गुणों और विचारों को अच्छी तरह परख लेना चाहिए।
  • अगर हर आदमी अपना-अपना सुधार कर ले तो, सारा संसार सुधर सकता है; क्योंकि एक-एक के जोड़ से ही संसार बनता है।
  • अगर कुछ करना व बनाना चाहते हो तो सर्वप्रथम लक्ष्य को निर्धारित करें। वरना जीवन में उचित उपलब्धि नहीं कर पायेंगे।
  • अगर आपके पास जेब में सिर्फ दो पैसे हों तो एक पैसे से रोटी ख़रीदें तथा दूसरे से गुलाब की एक कली।
  • अतीत की स्म्रतियाँ और भविष्य की कल्पनाएँ मनुष्य को वर्तमान जीवन का सही आनंद नहीं लेने देतीं। वर्तमान में सही जीने के लिये आवश्य है अनुकूलता और प्रतिकूलता में सम रहना।
  • अतीत को कभी विस्म्रत न करो, अतीत का बोध हमें ग़लतियों से बचाता है।
  • अपराध करने के बाद डर पैदा होता है और यही उसका दण्ड है।
  • अभागा वह है, जो कृतज्ञता को भूल जाता है।
  • अखण्ड ज्योति ही प्रभु का प्रसाद है, वह मिल जाए तो जीवन में चार चाँद लग जाएँ।
  • अडिग रूप से चरित्रवान बनें, ताकि लोग आप पर हर परिस्थिति में विश्वास कर सकें।
  • अच्छा व ईमानदार जीवन बिताओ और अपने चरित्र को अपनी मंज़िल मानो।
  • अच्छा साहित्य जीवन के प्रति आस्था ही उत्पन्न नहीं करता, वरन उसके सौंदर्य पक्ष का भी उदघाटन कर उसे पूजनीय बना देता है।
  • अधिक सांसारिक ज्ञान अर्जित करने से अंहकार आ सकता है, परन्तु आध्यात्मिक ज्ञान जितना अधिक अर्जित करते हैं, उतनी ही नम्रता आती है।
  • अधिक इच्छाएँ प्रसन्नता की सबसे बड़ी शत्रु हैं।
  • अपनापन ही प्यारा लगता है। यह आत्मीयता जिस पदार्थ अथवा प्राणी के साथ जुड़ जाती है, वह आत्मीय, परम प्रिय लगने लगती है।
  • अवसर की प्रतीक्षा में मत बैठो। आज का अवसर ही सर्वोत्तम है।
  • अवसर उनकी सहायता कभी नहीं करता, जो अपनी सहायता नहीं करते।
  • अवसर की प्रतीक्षा में मत बैठों। आज का अवसर ही सर्वोत्तम है।
  • अवतार व्यक्ति के रूप में नहीं, आदर्शवादी प्रवाह के रूप में होते हैं और हर जीवन्त आत्मा को युगधर्म निबाहने के लिए बाधित करते हैं।
  • अस्त-व्यस्त रीति से समय गँवाना अपने ही पैरों कुल्हाड़ी मारना है।
  • अवांछनीय कमाई से बनाई हुई खुशहाली की अपेक्षा ईमानदारी के आधार पर गरीबों जैसा जीवन बनाये रहना कहीं अच्छा है।
  • असत्य से धन कमाया जा सकता है, पर जीवन का आनन्द, पवित्रता और लक्ष्य नहीं प्राप्त किया जा सकता।
  • अंध परम्पराएँ मनुष्य को अविवेकी बनाती हैं।
  • अंध श्रद्धा का अर्थ है, बिना सोचे-समझे, आँख मूँदकर किसी पर भी विश्वास।
  • असफलता केवल यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास पूरे मन से नहीं हुआ।
  • असफलता मुझे स्वीकार्य है किन्तु प्रयास न करना स्वीकार्य नहीं है।
  • असफलताओं की कसौटी पर ही मनुष्य के धैर्य, साहस तथा लगनशील की परख होती है। जो इसी कसौटी पर खरा उतरता है, वही वास्तव में सच्चा पुरुषार्थी है।
  • अस्वस्थ मन से उत्पन्न कार्य भी अस्वस्थ होंगे।
  • असत्‌ से सत्‌ की ओर, अंधकार से आलोक की ओर तथा विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना है।
  • अश्लील, अभद्र अथवा भोगप्रधान मनोरंजन पतनकारी होते हैं।
  • अंतरंग बदलते ही बहिरंग के उलटने में देर नहीं लगती है।
  • अनीति अपनाने से बढ़कर जीवन का तिरस्कार और कुछ हो ही नहीं सकता।
  • अव्यवस्थित जीवन, जीवन का ऐसा दुरुपयोग है, जो दरिद्रता की वृद्धि कर देता है। काम को कल के लिए टालते रहना और आज का दिन आलस्य में बिताना एक बहुत बड़ी भूल है। आरामतलबी और निष्क्रियता से बढ़कर अनैतिक बात और दूसरी कोई नहीं हो सकती।
  • अहंकार छोड़े बिना सच्चा प्रेम नहीं किया जा सकता।
  • अहंकार के स्थान पर आत्मबल बढ़ाने में लगें, तो समझना चाहिए कि ज्ञान की उपलब्धि हो गयी।
  • अन्याय में सहयोग देना, अन्याय के ही समान है।
  • अल्प ज्ञान ख़तरनाक होता है।
  • अहिंसा सर्वोत्तम धर्म है।
  • अधिकार जताने से अधिकार सिद्ध नहीं होता।
  • अपवित्र विचारों से एक व्यक्ति को चरित्रहीन बनाया जा सकता है, तो शुद्ध सात्विक एवं पवित्र विचारों से उसे संस्कारवान भी बनाया जा सकता है।
  • असंयम की राह पर चलने से आनन्द की मंज़िल नहीं मिलती।
  • अज्ञान और कुसंस्कारों से छूटना ही मुक्ति है।
  • असत्‌ से सत्‌ की ओर, अंधकार से आलोक की और विनाश से विकास की ओर बढ़ने का नाम ही साधना है।
  • ‘अखण्ड ज्योति’ हमारी वाणी है। जो उसे पढ़ते हैं, वे ही हमारी प्रेरणाओं से परिचित होते हैं।
  • अध्ययन, विचार, मनन, विश्वास एवं आचरण द्वार जब एक मार्ग को मज़बूति से पकड़ लिया जाता है, तो अभीष्ट उद्देश्य को प्राप्त करना बहुत सरल हो जाता है।
  • अनासक्त जीवन ही शुद्ध और सच्चा जीवन है।
  • अवकाश का समय व्यर्थ मत जाने दो।
  • अन्धेरी रात के बाद चमकीला सुबह अवश्य ही आता है।
  • अब भगवान गंगाजल, गुलाबजल और पंचामृत से स्नान करके संतुष्ट होने वाले नहीं हैं। उनकी माँग श्रम बिन्दुओं की है। भगवान का सच्चा भक्त वह माना जाएगा जो पसीने की बूँदों से उन्हें स्नान कराये।
  • अज्ञानी वे हैं, जो कुमार्ग पर चलकर सुख की आशा करते हैं।
  • अंत:करण मनुष्य का सबसे सच्चा मित्र, नि:स्वार्थ पथप्रदर्शक और वात्सल्यपूर्ण अभिभावक है। वह न कभी धोखा देता है, न साथ छोड़ता है और न उपेक्षा करता है।
  • अंत:मन्थन उन्हें ख़ासतौर से बेचैन करता है, जिनमें मानवीय आस्थाएँ अभी भी अपने जीवंत होने का प्रमाण देतीं और कुछ सोचने करने के लिये नोंचती-कचौटती रहती हैं।
  • अच्छाइयों का एक-एक तिनका चुन-चुनकर जीवन भवन का निर्माण होता है, पर बुराई का एक हलका झोंका ही उसे मिटा डालने के लिए पर्याप्त होता है।
  • अच्छाई का अभिमान बुराई की जड़ है।
  • अज्ञान, अंधकार, अनाचार और दुराग्रह के माहौल से निकलकर हमें समुद्र में खड़े स्तंभों की तरह एकाकी खड़े होना चाहिये। भीतर का ईमान, बाहर का भगवान इन दो को मज़बूती से पकड़ें और विवेक तथा औचित्य के दो पग बढ़ाते हुये लक्ष्य की ओर एकाकी आगे बढ़ें तो इसमें ही सच्चा शौर्य, पराक्रम है। भले ही लोग उपहास उड़ाएं या असहयोगी, विरोधी रुख़ बनाए रहें।
  • अधिकांश मनुष्य अपनी शक्तियों का दशमांश ही का प्रयोग करते हैं, शेष 90 प्रतिशत तो सोती रहती हैं।
  • अर्जुन की तरह आप अपना चित्त केवल लक्ष्य पर केन्द्रित करें, एकाग्रता ही आपको सफलता दिलायेगी।

  • आवेश जीवन विकास के मार्ग का भयानक रोड़ा है, जिसको मनुष्य स्वयं ही अपने हाथ अटकाया करता है।
  • आँखों से देखा’ एक बार अविश्वसनीय हो सकता है किन्तु ‘अनुभव से सीका’ कभी भी अविश्वसनीय नहीं हो सकता।
  • आसक्ति संकुचित वृत्ति है।
  • आपकी बुद्धि ही आपका गुरु है।
  • आय से अधिक खर्च करने वाले तिरस्कार सहते और कष्ट भोगते हैं।
  • आरोग्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है।
  • आहार से मनुष्य का स्वभाव और प्रकृति तय होती है, शाकाहार से स्वभाव शांत रहता है, मांसाहार मनुष्य को उग्र बनाता है।
  • आयुर्वेद हमारी मिट्टी हमारी संस्कृति व प्रकृती से जुड़ी हुई निरापद चिकित्सा पद्धति है।
  • आयुर्वेद वस्तुत: जीवन जीने का ज्ञान प्रदान करता है, अत: इसे हम धर्म से अलग नहीं कर सकते। इसका उद्देश्य भी जीवन के उद्देश्य की भाँति चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति ही है।
  • आनन्द प्राप्ति हेतु त्याग व संयम के पथ पर बढ़ना होगा।
  • आत्मा को निर्मल बनाकर, इंद्रियों का संयम कर उसे परमात्मा के साथ मिला देने की प्रक्रिया का नाम योग है।
  • आत्मा का परिष्कृत रूप ही परमात्मा है। – वाङ्गमय
  • आत्मा की उत्कृष्टता संसार की सबसे बड़ी सिद्धि है।
  • आत्मा का परिष्कृत रूप ही परमात्मा है।
  • आत्म निर्माण का अर्थ है – भाग्य निर्माण।
  • आत्म-विश्वास जीवन नैया का एक शक्तिशाली समर्थ मल्लाह है, जो डूबती नाव को पतवार के सहारे ही नहीं, वरन्‌ अपने हाथों से उठाकर प्रबल लहरों से पार कर देता है।
  • आत्मा की पुकार अनसुनी न करें।
  • आत्मा के संतोष का ही दूसरा नाम स्वर्ग है।
  • आत्मीयता को जीवित रखने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि ग़लतियों को हम उदारतापूर्वक क्षमा करना सीखें।
  • आत्म-निरीक्षण इस संसार का सबसे कठिन, किन्तु करने योग्य कर्म है।
  • आत्मबल ही इस संसार का सबसे बड़ा बल है।
  • आत्म-निर्माण का ही दूसरा नाम भाग्य निर्माण है।
  • आत्म निर्माण ही युग निर्माण है।
  • आत्मविश्वासी कभी हारता नहीं, कभी थकता नहीं, कभी गिरता नहीं और कभी मरता नहीं।
  • आत्मानुभूति यह भी होनी चाहिए कि सबसे बड़ी पदवी इस संसार में मार्गदर्शक की है।
  • आराम की जिन्गदी एक तरह से मौत का निमंत्रण है।
  • आलस्य से आराम मिल सकता है, पर यह आराम बड़ा महँगा पड़ता है।
  • आज के कर्मों का फल मिले इसमें देरी तो हो सकती है, किन्तु कुछ भी करते रहने और मनचाहे प्रतिफल पाने की छूट किसी को भी नहीं है।
  • आज के काम कल पर मत टालिए।
  • आज का मनुष्य अपने अभाव से इतना दुखी नहीं है, जितना दूसरे के प्रभाव से होता है।
  • आदर्शों के प्रति श्रद्धा और कर्तव्य के प्रति लगन का जहाँ भी उदय हो रहा है, समझना चाहिए कि वहाँ किसी देवमानव का आविर्भाव हो रहा है।
  • आदर्शवाद की लम्बी-चौड़ी बातें बखानना किसी के लिए भी सरल है, पर जो उसे अपने जीवनक्रम में उतार सके, सच्चाई और हिम्मत का धनी वही है।
  • आशावाद और ईश्वरवाद एक ही रहस्य के दो नाम हैं।
  • आशावादी हर कठिनाई में अवसर देखता है, पर निराशावादी प्रत्येक अवसर में कठिनाइयाँ ही खोजता है।
  • आप समय को नष्ट करेंगे तो समय भी आपको नष्ट कर देगा।
  • आप बच्चों के साथ कितना समय बिताते हैं, वह इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, जितना कैसे बिताते हैं।
  • आप अपनी अच्छाई का जितना अभिमान करोगे, उतनी ही बुराई पैदा होगी। इसलिए अच्छे बनो, पर अच्छाई का अभिमान मत करो।
  • आस्तिकता का अर्थ है- ईश्वर विश्वास और ईश्वर विश्वास का अर्थ है एक ऐसी न्यायकारी सत्ता के अस्तित्व को स्वीकार करना जो सर्वव्यापी है और कर्मफल के अनुरूप हमें गिरने एवं उठने का अवसर प्रस्तुत करती है।
  • आर्थिक युद्ध में किसी राष्ट्र को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी मुद्रा को खोटा कर देना और किसी राष्ट्र की संस्कृति और पहचान को नष्ट करने का सुनिश्चित तरीका है, उसकी भाषा को हीन बना देना।

  • इंसान को आंका जाता है अपने काम से। जब काम व उत्तम विचार मिलकर काम करें तो मुख पर एक नया – सा, अलग – सा तेज़ आ जाता है।
  • इन्सान का जन्म ही, दर्द एवं पीडा के साथ होता है। अत: जीवन भर जीवन में काँटे रहेंगे। उन काँटों के बीच तुम्हें गुलाब के फूलों की तरह, अपने जीवन-पुष्प को विकसित करना है।
  • इन दोनों व्यक्तियों के गले में पत्थर बाँधकर पानी में डूबा देना चाहिए- एक दान न करने वाला धनिक तथा दूसरा परिश्रम न करने वाला दरिद्र।
  • इस दुनिया में ना कोई ज़िन्दगी जीता है, ना कोई मरता है, सभी सिर्फ़ अपना-अपना कर्ज़ चुकाते हैं।
  • इस संसार में कमज़ोर रहना सबसे बड़ा अपराध है।
  • इस संसार में अनेक विचार, अनेक आदर्श, अनेक प्रलोभन और अनेक भ्रम भरे पड़े हैं।
  • इस संसार में प्यार करने लायक़ दो वस्तुएँ हैं – एक दु:ख और दूसरा श्रम। दुख के बिना हृदय निर्मल नहीं होता और श्रम के बिना मनुष्यत्व का विकास नहीं होता।
  • ‘इदं राष्ट्राय इदन्न मम’ मेरा यह जीवन राष्ट्र के लिए है।
  • इन दिनों जाग्रत्‌ आत्मा मूक दर्शक बनकर न रहे। बिना किसी के समर्थन, विरोध की परवाह किए आत्म-प्रेरणा के सहारे स्वयंमेव अपनी दिशाधारा का निर्माण-निर्धारण करें।
  • इस युग की सबसे बड़ी शक्ति शस्त्र नहीं, सद्‌विचार है।
  • इतराने में नहीं, श्रेष्ठ कार्यों में ऐश्वर्य का उपयोग करो।
  • इस बात पर संदेह नहीं करना चाहिये कि विचारवान और उत्साही व्यक्तियों का एक छोटा सा समूह इस संसार को बदल सकता है। वास्तव मे इस संसार को छोटे से समूह ने ही बदला है।
  • इतिहास और पुराण साक्षी हैं कि मनुष्य के संकल्प के सम्मुख देव-दानव सभी पराजित हो जाते हैं।

  • ईश्वर की शरण में गए बगैर साधना पूर्ण नहीं होती।
  • ईश्वर उपासना की सर्वोपरि सब रोग नाशक औषधि का आप नित्य सेवन करें।
  • ईश्वर अर्थात्‌ मानवी गरिमा के अनुरूप अपने को ढालने के लिए विवश करने की व्यवस्था।
  • ईमान और भगवान ही मनुष्य के सच्चे मित्र है।
  • ईश्वर ने आदमी को अपनी अनुकृतिका बनाया।
  • ईश्वर एक ही समय में सर्वत्र उपस्थित नहीं हो सकता था , अतः उसने ‘मां’ बनाया।
  • ईमानदार होने का अर्थ है – हज़ार मनकों में अलग चमकने वाला हीरा।
  • ईमानदारी, खरा आदमी, भलेमानस-यह तीन उपाधि यदि आपको अपने अन्तस्तल से मिलती है तो समझ लीजिए कि आपने जीवन फल प्राप्त कर लिया, स्वर्ग का राज्य अपनी मुट्ठी में ले लिया।
  • ईष्र्या न करें, प्रेरणा ग्रहण करें।
  • ईष्र्या आदमी को उसी तरह खा जाती है, जैसे कपड़े को कीड़ा।

  • उसकी जय कभी नहीं हो सकती, जिसका दिल पवित्र नहीं है।
  • उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति होने तक मत रुको।
  • उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंज़िल प्राप्त न हो जाये।
  • उच्चस्तरीय महत्त्वाकांक्षा एक ही है कि अपने को इस स्तर तक सुविस्तृत बनाया जाय कि दूसरों का मार्गदर्शन कर सकना संभव हो सके।
  • उच्चस्तरीय स्वार्थ का नाम ही परमार्थ है। परमार्थ के लिये त्याग आवश्यक है पर यह एक बहुत बडा निवेश है जो घाटा उठाने की स्थिति में नहीं आने देता।
  • उदारता, सेवा, सहानुभूति और मधुरता का व्यवहार ही परमार्थ का सार है।
  • उतावला आदमी सफलता के अवसरों को बहुधा हाथ से गँवा ही देता है।
  • उपदेश देना सरल है, उपाय बताना कठिन।
  • उत्कर्ष के साथ संघर्ष न छोड़ो!
  • उत्तम पुस्तकें जाग्रत्‌ देवता हैं। उनके अध्ययन-मनन-चिंतन के द्वारा पूजा करने पर तत्काल ही वरदान पाया जा सकता है।
  • ‘उत्तम होना’ एक कार्य नहीं बल्कि स्वभाव होता है।
  • उत्तम ज्ञान और सद्‌विचार कभी भी नष्ट नहीं होते हैं।
  • उत्कृष्टता का दृष्टिकोण ही जीवन को सुरक्षित एवं सुविकसित बनाने एकमात्र उपाय है।
  • उत्कृष्ट जीवन का स्वरूप है- दूसरों के प्रति नम्र और अपने प्रति कठोर होना।
  • उनसे दूर रहो जो भविष्य को निराशाजनक बताते हैं।
  • उपासना सच्ची तभी है, जब जीवन में ईश्वर घुल जाए।
  • उन्नति के किसी भी अवसर को खोना नहीं चाहिए।
  • उनकी प्रशंसा करो जो धर्म पर दृढ़ हैं। उनके गुणगान न करो, जिनने अनीति से सफलता प्राप्त की।
  • उनकी नकल न करें जिनने अनीतिपूर्वक कमाया और दुव्र्यसनों में उड़ाया। बुद्धिमान कहलाना आवश्यक नहीं। चतुरता की दृष्टि से पक्षियों में कौवे को और जानवरों में चीते को प्रमुख गिना जाता है। ऐसे चतुरों और दुस्साहसियों की बिरादरी जेलखानों में बनी रहती है। ओछों की नकल न करें। आदर्शों की स्थापना करते समय श्रेष्ठ, सज्जनों को, उदार महामानवों को ही सामने रखें।
  • उद्धेश्य निश्चित कर लेने से आपके मनोभाव आपके आशापूर्ण विचार आपकी महत्वकांक्षाये एक चुम्बक का काम करती हैं। वे आपके उद्धेश्य की सिद्धी को सफलता की ओर खींचती हैं।
  • उद्धेश्य प्राप्ति हेतु कर्म, विचार और भावना का धु्रवीकरण करना चाहिये।
  • उनसे कभी मित्रता न कर, जो तुमसे बेहतर नहीं।

  • ऊंचे उद्देश्य का निर्धारण करने वाला ही उज्ज्वल भविष्य को देखता है।
  • ऊँचे सिद्धान्तों को अपने जीवन में धारण करने की हिम्मत का नाम है – अध्यात्म।
  • ऊँचे उठो, प्रसुप्त को जगाओं, जो महान है उसका अवलम्बन करो ओर आगे बढ़ो।
  • ऊद्यम ही सफलता की कुंजी है।
  • ऊपर की ओर चढ़ना कभी भी दूसरों को पैर के नीचे दबाकर नहीं किया जा सकता वरना ऐसी सफलता भूत बनकर आपका भविष्य बिगाड़ देगी।

  • एक ही पुत्र यदि विद्वान और अच्छे स्वभाव वाला हो तो उससे परिवार को ऐसी ही खुशी होती है, जिस प्रकार एक चन्द्रमा के उत्पन्न होने पर काली रात चांदनी से खिल उठती है।
  • एक झूठ छिपाने के लिये दस झूठ बोलने पडते हैं।
  • एक गुण समस्त दोषो को ढक लेता है।
  • एक सत्य का आधार ही व्यक्ति को भवसागर से पार कर देता है।
  • एक बार लक्ष्य निर्धारित करने के बाद बाधाओं और व्यवधानों के भय से उसे छोड़ देना कायरता है। इस कायरता का कलंक किसी भी सत्पुरुष को नहीं लेना चाहिए।
  • एकांगी अथवा पक्षपाती मस्तिष्क कभी भी अच्छा मित्र नहीं रहता।
  • एकाग्रता से ही विजय मिलती है।
  • एक शेर को भी मक्खियों से अपनी रक्षा करनी पड़ती है।

  • कोई भी साधना कितनी ही ऊँची क्यों न हो, सत्य के बिना सफल नहीं हो सकती।
  • कोई भी कठिनाई क्यों न हो, अगर हम सचमुच शान्त रहें तो समाधान मिल जाएगा।
  • कोई भी कार्य सही या ग़लत नहीं होता, हमारी सोच उसे सही या ग़लत बनाती है।
  • कोई भी इतना धनि नहीं कि पड़ौसी के बिना काम चला सके।
  • कोई अपनी चमड़ी उखाड़ कर भीतर का अंतरंग परखने लगे तो उसे मांस और हड्डियों में एक तत्व उफनता दृष्टिगोचर होगा, वह है असीम प्रेम। हमने जीवन में एक ही उपार्जन किया है प्रेम। एक ही संपदा कमाई है – प्रेम। एक ही रस हमने चखा है वह है प्रेम का।
  • कई बच्चे हज़ारों मील दूर बैठे भी माता – पिता से दूर नहीं होते और कई घर में साथ रहते हुई भी हज़ारों मील दूर होते हैं।
  • कर्म सरल है, विचार कठिन।
  • कर्म करने में ही अधिकार है, फल में नहीं।
  • कर्म ही मेरा धर्म है। कर्म ही मेरी पूजा है।
  • कर्म करनी ही उपासना करना है, विजय प्राप्त करनी ही त्याग करना है। स्वयं जीवन ही धर्म है, इसे प्राप्त करना और अधिकार रखना उतना ही कठोर है जितना कि इसका त्याग करना और विमुख होना।
  • कर्म ही पूजा है और कर्त्तव्य पालन भक्ति है।
  • कर्म भूमि पर फ़ल के लिए श्रम सबको करना पड़ता है। रब सिर्फ़ लकीरें देता है रंग हमको भरना पड़ता है।
  • किसी को आत्म-विश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन देना ही सर्वोत्तम उपहार है।
  • किसी सदुद्देश्य के लिए जीवन भर कठिनाइयों से जूझते रहना ही महापुरुष होना है।
  • किसी महान उद्देश्य को न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से पीछे हट जाना।
  • किसी को ग़लत मार्ग पर ले जाने वाली सलाह मत दो।
  • किसी के दुर्वचन कहने पर क्रोध न करना क्षमा कहलाता है।
  • किसी से ईर्ष्या करके मनुष्य उसका तो कुछ बिगाड़ नहीं सकता है, पर अपनी निद्रा, अपना सुख और अपना सुख-संतोष अवश्य खो देता है।
  • किसी महान उद्देश्य को लेकर न चलना उतनी लज्जा की बात नहीं होती, जितनी कि चलने के बाद कठिनाइयों के भय से रुक जाना अथवा पीछे हट जाना।
  • किसी वस्तु की इच्छा कर लेने मात्र से ही वह हासिल नहीं होती, इच्छा पूर्ति के लिए कठोर परिश्रम व प्रयत्न आवश्यक होता हैं।
  • किसी बेईमानी का कोई सच्चा मित्र नहीं होता।
  • किसी समाज, देश या व्यक्ति का गौरव अन्याय के विरुद्ध लड़ने में ही परखा जा सकता है।
  • किसी का अमंगल चाहने पर स्वयं पहले अपना अमंगल होता है।
  • किसी भी व्यक्ति को मर्यादा में रखने के लिये तीन कारण ज़िम्मेदार होते हैं – व्यक्ति का मष्तिष्क, शारीरिक संरचना और कार्यप्रणाली, तभी उसके व्यक्तित्व का सामान्य विकास हो पाता है।
  • किसी का बुरा मत सोचो; क्योंकि बुरा सोचते-सोचते एक दिन अच्छा-भला व्यक्ति भी बुरे रास्ते पर चल पड़ता है।
  • किसी आदर्श के लिए हँसते-हँसते जीवन का उत्सर्ग कर देना सबसे बड़ी बहादुरी है।
  • किसी को हृदय से प्रेम करना शक्ति प्रदान करता है और किसी के द्वारा हृदय से प्रेम किया जाना साहस।
  • किसी का मनोबल बढ़ाने से बढ़कर और अनुदान इस संसार में नहीं है।
  • काल (समय) सबसे बड़ा देवता है, उसका निरादर मत करा॥
  • कामना करने वाले कभी भक्त नहीं हो सकते। भक्त शब्द के साथ में भगवान की इच्छा पूरी करने की बात जुड़ी रहती है।
  • कर्त्तव्यों के विषय में आने वाले कल की कल्पना एक अंध-विश्वास है।
  • कर्त्तव्य पालन ही जीवन का सच्चा मूल्य है।
  • कभी-कभी मौन से श्रेष्ठ उत्तर नहीं होता, यह मंत्र याद रखो और किसी बात के उत्तर नहीं देना चाहते हो तो हंसकर पूछो- आप यह क्यों जानना चाहते हों?
  • क्रोध बुद्धि को समाप्त कर देता है। जब क्रोध समाप्त हो जाता है तो बाद में बहुत पश्चाताप होता है।
  • क्रोध का प्रत्येक मिनट आपकी साठ सेकण्डों की खुशी को छीन लेता है।
  • कल की असफलता वह बीज है जिसे आज बोने पर आने वाले कल में सफलता का फल मिलता है।
  • कठिन परिश्रम का कोई भी विकल्प नहीं होता।
  • कुमति व कुसंगति को छोड़ अगर सुमति व सुसंगति को बढाते जायेंगे तो एक दिन सुमार्ग को आप अवश्य पा लेंगे।
  • कुकर्मी से बढ़कर अभागा और कोई नहीं है; क्योंकि विपत्ति में उसका कोई साथी नहीं होता।
  • कार्य उद्यम से सिद्ध होते हैं, मनोरथों से नहीं।
  • कुचक्र, छद्‌म और आतंक के बलबूते उपार्जित की गई सफलताएँ जादू के तमाशे में हथेली पर सरसों जमाने जैसे चमत्कार दिखाकर तिरोहित हो जाती हैं। बिना जड़ का पेड़ कब तक टिकेगा और किस प्रकार फलेगा-फूलेगा।
  • केवल ज्ञान ही एक ऐसा अक्षय तत्त्व है, जो कहीं भी, किसी अवस्था और किसी काल में भी मनुष्य का साथ नहीं छोड़ता।
  • काम छोटा हो या बड़ा, उसकी उत्कृष्टता ही करने वाले का गौरव है।
  • कीर्ति वीरोचित कार्यों की सुगन्ध है।
  • कायर मृत्यु से पूर्व अनेकों बार मर चुकता है, जबकि बहादुर को मरने के दिन ही मरना पड़ता है।
  • करना तो बड़ा काम, नहीं तो बैठे रहना, यह दुराग्रह मूर्खतापूर्ण है।
  • कुसंगी है कोयलों की तरह, यदि गर्म होंगे तो जलाएँगे और ठंडे होंगे तो हाथ और वस्त्र काले करेंगे।
  • क्या तुम नहीं अनुभव करते कि दूसरों के ऊपर निर्भर रहना बुद्धिमानी नहीं है। बुद्धिमान व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढता पूर्वक खडा होकर कार्य करना चहिए। धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा।
  • कमज़ोरी का इलाज कमज़ोरी का विचार करना नहीं, पर शक्ति का विचार करना है। मनुष्यों को शक्ति की शिक्षा दो, जो पहले से ही उनमें हैं।
  • काली मुरग़ी भी सफ़ेद अंडा देती है।
  • कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो इसलिए आत्महत्या नहीं करते क्योंकि उन्हें लगता है कि लोग क्या कहेंगे।
  • कुछ लोग दुर्भीति (Phobia) के शिकार हो जाते हैं उन्हें उनकी क्षमता पर पूरा विश्वास नहीं रहता और वे सोचते हैं प्रतियोगिता के दौड़ में अन्य प्रतियोगी आगे निकल जायेंगे।
  • कंजूस के पास जितना होता है उतना ही वह उस के लिए तरसता है जो उस के पास नहीं होता।

  • खुशामद बड़े-बड़ों को ले डूबती है।
  • खुद साफ़ रहो, सुरक्षित रहो और औरों को भी रोगों से बचाओं।
  • खरे बनिये, खरा काम कीजिए और खरी बात कहिए। इससे आपका हृदय हल्का रहेगा।
  • खुश होने का यह अर्थ नहीं है कि जीवन में पूर्णता है बल्कि इसका अर्थ है कि आपने जीवन की अपूर्णता से परे रहने का निश्चय कर लिया है।
  • खेती, पाती, बीनती, औ घोड़े की तंग । अपने हाथ संवारिये चाहे लाख लोग हो संग ।। खेती करना, पत्र लिखना और पढ़ना, तथा घोड़ा या जिस वाहन पर सवारी करनी हो उसकी जॉंच और तैयारी मनुष्‍य को स्‍वयं ही खुद करना चाहिये भले ही लाखों लोग साथ हों और अनेकों सेवक हों, वरना मनुष्‍य का नुकसान तय शुदा है।

  • गुण व कर्म से ही व्यक्ति स्वयं को ऊपर उठाता है। जैसे कमल कहाँ पैदा हुआ, इसमें विशेषता नहीं, बल्कि विशेषता इसमें है कि, कीचड़ में रहकर भी उसने स्वयं को ऊपर उठाया है।
  • गुण और दोष प्रत्येक व्यक्ति में होते हैं, योग से जुड़ने के बाद दोषों का शमन हो जाता है और गुणों में बढ़ोत्तरी होने लगती है।
  • गुण, कर्म और स्वभाव का परिष्कार ही अपनी सच्ची सेवा है।
  • गुण ही नारी का सच्चा आभूषण है।
  • गुणों की वृद्धि और क्षय तो अपने कर्मों से होता है।
  • गृहस्थ एक तपोवन है, जिसमें संयम, सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है।
  • गायत्री उपासना का अधिकर हर किसी को है। मनुष्य मात्र बिना किसी भेदभाव के उसे कर सकता है।
  • ग़लती को ढूढना, मानना और सुधारना ही मनुष्य का बड़प्पन है।
  • ग़लती करना मनुष्यत्व है और क्षमा करना देवत्व।
  • गृहसि एक तपोवन है जिसमें संयम, सेवा, त्याग और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है।
  • गंगा की गोद, हिमालय की छाया, ऋषि विश्वामित्र की तप:स्थली, अजस्त्र प्राण ऊर्जा का उद्‌भव स्रोत गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज जैसा जीवन्त स्थान उपासना के लिए दूसरा ढूँढ सकना कठिन है।
  • गाली-गलौज, कर्कश, कटु भाषण, अश्लील मजाक, कामोत्तेजक गीत, निन्दा, चुगली, व्यंग, क्रोध एवं आवेश भरा उच्चारण, वाणी की रुग्णता प्रकट करते हैं। ऐसे शब्द दूसरों के लिए ही मर्मभेदी नहीं होते वरन्‌ अपने लिए भी घातक परिणाम उत्पन्न करते हैं।
  • खेती, पाती, बीनती, औ घोड़े की तंग । अपने हाथ संवारिये चाहे लाख लोग हो संग ।। खेती करना, पत्र लिखना और पढ़ना, तथा घोड़ा या जिस वाहन पर सवारी करनी हो उसकी जॉंच और तैयारी मनुष्‍य को स्‍वयं ही खुद करना चाहिये भले ही लाखों लोग साथ हों और अनेकों सेवक हों, वरना मनुष्‍य का नुकसान तय शुदा है।

  • घृणा करने वाला निन्दा, द्वेष, ईर्ष्या करने वाले व्यक्ति को यह डर भी हमेशा सताये रहता है, कि जिससे मैं घृणा करता हूँ, कहीं वह भी मेरी निन्दा व मुझसे घृणा न करना शुरू कर दे।

  • चरित्र का अर्थ है – अपने महान मानवीय उत्तरदायित्वों का महत्त्व समझना और उसका हर कीमत पर निर्वाह करना।
  • चरित्र ही मनुष्य की श्रेष्ठता का उत्तम मापदण्ड है।
  • चरित्रवान्‌ व्यक्ति ही किसी राष्ट्र की वास्तविक सम्पदा है। – वाङ्गमय
  • चरित्रवान व्यक्ति ही सच्चे अर्थों में भगवद्‌ भक्त हैं।
  • चरित्रनिष्ठ व्यक्ति ईश्वर के समान है।
  • चिंतन और मनन बिना पुस्तक बिना साथी का स्वाध्याय-सत्संग ही है।
  • चिता मरे को जलाती है, पर चिन्ता तो जीवित को ही जला डालती है।
  • चोर, उचक्के, व्यसनी, जुआरी भी अपनी बिरादरी निरंतर बढ़ाते रहते हैं । इसका एक ही कारण है कि उनका चरित्र और चिंतन एक होता है। दोनों के मिलन पर ही प्रभावोत्पादक शक्ति का उद्‌भव होता है। किंतु आदर्शों के क्षेत्र में यही सबसे बड़ी कमी है।
  • चेतना के भावपक्ष को उच्चस्तरीय उत्कृष्टता के साथ एकात्म कर देने को ‘योग’ कहते हैं।
  • चिल्‍ला कर और झल्‍ला कर बातें करना, बिना सलाह मांगे सलाह देना, किसी की मजबूरी में अपनी अहमियत दर्शाना और सिद्ध करना, ये कार्य दुनियां का सबसे कमज़ोर और असहाय व्‍यक्ति करता है, जो खुद को ताकतवर समझता है और जीवन भर बेवकूफ बनता है, घृणा का पात्र बन कर दर दर की ठोकरें खाता है।

  • जीवन का महत्त्वा इसलिये है, ख्योंकी मृत्यु है। मृत्यु न हो तो ज़िन्दगी बोझ बन जायेगी. इसलिये मृत्यु को दोस्त बनाओ, उसी दरो नहीं।
  • जीवन का हर क्षण उज्ज्वल भविष्य की संभावना लेकर आता है।
  • जीवन का अर्थ है समय। जो जीवन से प्यार करते हों, वे आलस्य में समय न गँवाएँ।
  • जीवन को विपत्तियों से धर्म ही सुरक्षित रख सकता है।
  • जीवन चलते रहने का नाम है। सोने वाला सतयुग में रहता है, बैठने वाला द्वापर में, उठ खडा होने वाला त्रेता में, और चलने वाला सतयुग में, इसलिए चलते रहो।
  • जीवन उसी का धन्य है जो अनेकों को प्रकाश दे। प्रभाव उसी का धन्य है जिसके द्वारा अनेकों में आशा जाग्रत हो।
  • जीवन एक परख और कसौटी है जिसमें अपनी सामथ्र्य का परिचय देने पर ही कुछ पा सकना संभव होता है।
  • जीवन की सफलता के लिए यह नितांत आवश्यक है कि हम विवेकशील और दूरदर्शी बनें।
  • जीवन की माप जीवन में ली गई साँसों की संख्या से नहीं होती बल्कि उन क्षणों की संख्या से होती है जो हमारी साँसें रोक देती हैं।
  • जीवन भगवान की सबसे बड़ी सौगात है। मनुष्य का जन्म हमारे लिए भगवान का सबसे बड़ा उपहार है।
  • जीवन के आनन्द गौरव के साथ, सम्मान के साथ और स्वाभिमान के साथ जीने में है।
  • जीवन के प्रकाशवान्‌ क्षण वे हैं, जो सत्कर्म करते हुए बीते।
  • जीवन साधना का अर्थ है – अपने समय, श्रम ओर साधनों का कण-कण उपयोगी दिशा में नियोजित किये रहना। – वाङ्गमय
  • जीवन दिन काटने के लिए नहीं, कुछ महान कार्य करने के लिए है।
  • जीवन उसी का सार्थक है, जो सदा परोपकार में प्रवृत्त है।
  • जीवन एक पाठशाला है, जिसमें अनुभवों के आधार पर हम शिक्षा प्राप्त करते हैं।
  • जीवन एक परीक्षा है। उसे परीक्षा की कसौटी पर सर्वत्र कसा जाता है।
  • जीवन एक पुष्प है और प्रेम उसका मधु है।
  • जीवन और मृत्यु में, सुख और दुःख मे ईश्वर समान रूप से विद्यमान है। समस्त विश्व ईश्वर से पूर्ण हैं। अपने नेत्र खोलों और उसे देखों।
  • जीवन में एक मित्र मिल गया तो बहुत है, दो बहुत अधिक है, तीन तो मिल ही नहीं सकते।
  • जीवनी शक्ति पेड़ों की जड़ों की तरह भीतर से ही उपजती है।
  • जीवनोद्देश्य की खोज ही सबसे बड़ा सौभाग्य है। उसे और कहीं ढूँढ़ने की अपेक्षा अपने हृदय में ढूँढ़ना चाहिए।
  • जब भी आपको महसूस हो, आपसे ग़लती हो गयी है, उसे सुधारने के उपाय तुरंत शुरू करो।
  • जब कभी भी हारो, हार के कारणों को मत भूलो।
  • जब हम किसी पशु-पक्षी की आत्मा को दु:ख पहुँचाते हैं, तो स्वयं अपनी आत्मा को दु:ख पहुँचाते हैं।
  • जब तक मानव के मन में मैं (अहंकार) है, तब तक वह शुभ कार्य नहीं कर सकता, क्योंकि मैं स्वार्थपूर्ति करता है और शुद्धता से दूर रहता है।
  • जब आगे बढ़ना कठिन होता है, तब कठिन परिश्रमी ही आगे बढ़ता है।
  • जब तक मनुष्य का लक्ष्य भोग रहेगा, तब तक पाप की जड़ें भी विकसित होती रहेंगी।
  • जब अंतराल हुलसता है, तो तर्कवादी के कुतर्की विचार भी ठण्डे पड़ जाते हैं।
  • जब मनुष्य दूसरों को भी अपना जीवन सार्थक करने को प्रेरित करता है तो मनुष्य के जीवन में सार्थकता आती है।
  • जब तक तुम स्वयं अपने अज्ञान को दूर करने के लिए कटिबद्ध नहीं होत, तब तक कोई तुम्हारा उद्धार नहीं कर सकता।
  • जब तक आत्मविश्वास रूपी सेनापति आगे नहीं बढ़ता तब तक सब शक्तियाँ चुपचाप खड़ी उसका मुँह ताकती रहती हैं।
  • जब संकटों के बादल सिर पर मँडरा रहे हों तब भी मनुष्य को धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए। धैर्यवान व्यक्ति भीषण परिस्थितियों में भी विजयी होते हैं।
  • जब मेरा अन्तर्जागरण हुआ, तो मैंने स्वयं को संबोधि वृक्ष की छाया में पूर्ण तृप्त पाया।
  • जब आत्मा मन से, मन इन्द्रिय से और इन्द्रिय विषय से जुडता है, तभी ज्ञान प्राप्त हो पाता है।
  • जब-जब हृदय की विशालता बढ़ती है, तो मन प्रफुल्लित होकर आनंद की प्राप्ति कर्ता है और जब संकीर्ण मन होता है, तो व्यक्ति दुःख भोगता है।
  • जिस तरह से एक ही सूखे वृक्ष में आग लगने से सारा जंगल जलकर राख हो सकता है, उसी प्रकार एक मूर्ख पुत्र सारे कुल को नष्ट कर देता है।
  • जिस में दया नहीं, उस में कोई सदगुण नहीं।
  • जिस प्रकार सुगन्धित फूलों से लदा एक वृक्ष सारे जंगले को सुगन्धित कर देता है, उसी प्रकार एक सुपुत्र से वंश की शोभा बढती है।
  • जिस प्रकार मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिम्‍ब नहीं पड़ता, उसी प्रकार मलिन अंत:करण में ईश्‍वर के प्रकाश का प्रतिबिम्‍ब नहीं पड़ सकता।
  • जिस तेज़ी से विज्ञान की प्रगति के साथ उपभोग की वस्तुएँ प्रचुर मात्रा में बनना शुरू हो गयी हैं, वे मनुष्य के लिये पिंजरा बन रही हैं।
  • जिस व्यक्ति का मन चंचल रहता है, उसकी कार्यसिद्धि नहीं होती।
  • जिस राष्ट्र में विद्वान् सताए जाते हैं, वह विपत्तिग्रस्त होकर वैसे ही नष्ट हो जाता है, जैसे टूटी नौका जल में डूबकर नष्ट हो जाती है।
  • जिस कर्म से किन्हीं मनुष्यों या अन्य प्राणियों को किसी भी प्रकार का कष्ट या हानि पहुंचे, वे ही दुष्कर्म कहलाते हैं।
  • जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल है और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है।
  • जिस आदर्श के व्यवहार का प्रभाव न हो, वह फिजूल और जो व्यवहार आदर्श प्रेरित न हो, वह भयंकर है।
  • जिस भी भले बुरे रास्ते पर चला जाये उस पर साथी – सहयोगी तो मिलते ही रहते हैं। इस दुनिया में न भलाई की कमी है, न बुराई की। पसंदगी अपनी, हिम्मत अपनी, सहायता दुनिया की।
  • जिस प्रकार हिमालय का वक्ष चीरकर निकलने वाली गंगा अपने प्रियतम समुद्र से मिलने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए तीर की तरह बहती-सनसनाती बढ़ती चली जाती है और उसक मार्ग रोकने वाले चट्टान चूर-चूर होते चले जाते हैं उसी प्रकार पुषार्थी मनुष्य अपने लक्ष्य को अपनी तत्परता एवं प्रखरता के आधार पर प्राप्त कर सकता है।
  • जिस दिन, जिस क्षण किसी के अंदर बुरा विचार आये अथवा कोई दुष्कर्म करने की प्रवृत्ति उपजे, मानना चाहिए कि वह दिन-वह क्षण मनुष्य के लिए अशुभ है।
  • जो कार्य प्रारंभ में कष्टदायक होते हैं, वे परिणाम में अत्यंत सुखदायक होते हैं।
  • जो मिला है और मिल रहा है, उससे संतुष्ट रहो।
  • जो दानदाता इस भावना से सुपात्र को दान देता है कि, तेरी (परमात्मा) वस्तु तुझे ही अर्पित है; परमात्मा उसे अपना प्रिय सखा बनाकर उसका हाथ थामकर उसके लिये धनों के द्वार खोल देता है; क्योंकि मित्रता सदैव समान विचार और कर्मों के कर्ता में ही होती है, विपरीत वालों में नहीं।
  • जो व्यक्ति कभी कुछ कभी कुछ करते हैं, वे अन्तत: कहीं भी नहीं पहुँच पाते।
  • जो सच्चाई के मार्ग पर चलता है, वह भटकता नहीं।
  • जो न दान देता है, न भोग करता है, उसका धन स्वतः नष्ट हो जाता है। अतः योग्य पात्र को दान देना चाहिए।
  • जो व्यक्ति हर स्थिति में प्रसन्न और शांत रहना सीख लेता है, वह जीने की कला प्राणी मात्र के लिये कल्याणकारी है।
  • जो व्यक्ति आचरण की पोथी को नहीं पढता, उसके पृष्ठों को नहीं पलटता, वह भला दूसरों का क्या भला कर पायेगा।
  • जो व्यक्ति शत्रु से मित्र होकर मिलता है, व धूल से धन बना सकता है।
  • जो मनुष्य अपने समीप रहने वालों की तो सहायता नहीं करता, किन्तु दूरस्थ की सहायता करता है, उसका दान, दान न होकर दिखावा है।
  • जो आलस्य और कुकर्म से जितना बचता है, वह ईश्वर का उतना ही बड़ा भक्त है।
  • जो टूटे को बनाना, रूठे को मनाना जानता है, वही बुद्धिमान है।
  • जो जैसा सोचता है और करता है, वह वैसा ही बन जाता है।
  • जो अपनी राह बनाता है वह सफलता के शिखर पर चढ़ता है; पर जो औरों की राह ताकता है सफलता उसकी मुँह ताकती रहती है।
  • जो बच्चों को सिखाते हैं, उन पर बड़े खुद अमल करें, तो यह संसार स्वर्ग बन जाय।
  • जो प्रेरणा पाप बनकर अपने लिए भयानक हो उठे, उसका परित्याग कर देना ही उचित है।
  • जो क्षमा करता है और बीती बातों को भूल जाता है, उसे ईश्वर पुरस्कार देता है।
  • जो संसार से ग्रसित रहता है, वह बुद्धू तो हो सकता; लेकिन बुद्ध नहीं हो सकता।
  • जो किसी की निन्दा स्तुति में ही अपने समय को बर्बाद करता है, वह बेचारा दया का पात्र है, अबोध है।
  • जो मनुष्य मन, वचन और कर्म से, ग़लत कार्यों से बचा रहता है, वह स्वयं भी प्रसन्न रहता है।।
  • जो दूसरों को धोखा देना चाहता है, वास्तव में वह अपने आपको ही धोखा देता है।
  • जो बीत गया सो गया, जो आने वाला है वह अज्ञात है! लेकिन वर्तमान तो हमारे हाथ में है।
  • जो तुम दूसरों से चाहते हो, उसे पहले तुम स्वयं करो।
  • जो असत्य को अपनाता है, वह सब कुछ खो बैठता है।
  • जो लोग डरने, घबराने में जितनी शक्ति नष्ट करते हैं, उसकी आधी भी यदि प्रस्तुत कठिनाइयों से निपटने का उपाय सोचने के लिए लगाये तो आधा संकट तो अपने आप ही टल सकता है।
  • जो मन का ग़ुलाम है, वह ईश्वर भक्त नहीं हो सकता। जो ईश्वर भक्त है, उसे मन की ग़ुलामी न स्वीकार हो सकती है, न सहन।
  • जो लोग पाप करते हैं उन्हें एक न एक विपत्ति सवदा घेरे ही रहती है, किन्तु जो पुण्य कर्म किया करते हैं वे सदा सुखी और प्रसन्न रह्ते हैं।
  • जो हमारे पास है, वह हमारे उपयोग, उपभोग के लिए है यही असुर भावना है।
  • जो तुम दूसरे से चाहते हो, उसे पहले स्वयं करो।
  • जो हम सोचते हैं सो करते हैं और जो करते हैं सो भुगतते हैं।
  • जो मन की शक्ति के बादशाह होते हैं, उनके चरणों पर संसार नतमस्तक होता है।
  • जो जैसा सोचता और करता है, वह वैसा ही बन जाता है।
  • जो महापुरुष बनने के लिए प्रयत्नशील हैं, वे धन्य है।
  • जो शत्रु बनाने से भय खाता है, उसे कभी सच्चे मित्र नहीं मिलेंगे।
  • जो समय को नष्‍ट करता है, समय भी उसे नष्‍ट कर देता है, समय का हनन करने वाले व्‍यक्ति का चित्‍त सदा उद्विग्‍न रहता है, और वह असहाय तथा भ्रमित होकर यूं ही भटकता रहता है, प्रति पल का उपयोग करने वाले कभी भी पराजित नहीं हो सकते, समय का हर क्षण का उपयोग मनुष्‍य को विलक्षण और अदभुत बना देता है।
  • जो किसी से कुछ ले कर भूल जाते हैं, अपने ऊपर किये उपकार को मानते नहीं, अहसान को भुला देते हैं उल्‍हें कृतघ्‍नी कहा जाता है, और जो सदा इसे याद रख कर प्रति उपकार करने और अहसान चुकाने का प्रयास करते हैं उन्‍हें कृतज्ञ कहा जाता है।
  • जो विषपान कर सकता है, चाहे विष परा‍जय का हो, चाहे अपमान का, वही शंकर का भक्‍त होने योग्‍य है और उसे ही शिवत्‍व की प्राप्ति संभव है, अपमान और पराजय से विचलित होने वाले लोग शिव भक्‍त होने योग्‍य ही नहीं, ऐसे लोगों की शिव पूजा केवल पाखण्‍ड है।
  • जैसे का साथ तैसा वह भी ब्‍याज सहित व्‍यवहार करना ही सर्वोत्‍तम नीति है, शठे शाठयम और उपदेशो हि मूर्खाणां प्रकोपाय न शान्‍तये के सूत्र को अमल मे लाना ही गुणकारी उपाय है।
  • जैसे बाहरी जीवन में युक्ति व शक्ति ज़रूरी है, वैसे ही आतंरिक जीवन के लिये मुक्ति व भक्ति आवश्यक है।
  • जैसे प्रकृति का हर कारण उपयोगी है, ऐसे ही हमें अपने जीवन के हर क्षण को परहित में लगाकर स्वयं और सभी के लिये उपयोगी बनाना चाहिए।
  • जैसे एक अच्छा गीत तभी सम्भव है, जब संगीत व शब्द लयबद्ध हों; वैसे ही अच्छे नेतृत्व के लिये ज़रूरी है कि आपकी करनी एवं कथनी में अंतर न हो।
  • जैसा अन्न, वैसा मन।
  • जैसा खाय अन्न, वैसा बने मन।
  • जैसे कोरे काग़ज़ पर ही पत्र लिखे जा सकते हैं, लिखे हुए पर नहीं, उसी प्रकार निर्मल अंत:करण पर ही योग की शिक्षा और साधना अंकित हो सकती है।
  • जहाँ वाद – विवाद होता है, वहां श्रद्धा के फूल नहीं खिल सकते और जहाँ जीवन में आस्था व श्रद्धा को महत्त्व न मिले, वहां जीवन नीरस हो जाता है।
  • जहाँ भी हो, जैसे भी हो, कर्मशील रहो, भाग्य अवश्य बदलेगा; अतः मनुष्य को कर्मवादी होना चाहिए, भाग्यवादी नहीं।
  • जहाँ सत्य होता है, वहां लोगों की भीड़ नहीं हुआ करती; क्योंकि सत्य ज़हर होता है और ज़हर को कोई पीना या लेना नहीं चाहता है, इसलिए आजकल हर जगह मेला लगा रहता है।
  • जहाँ मैं और मेरा जुड़ जाता है, वहाँ ममता, प्रेम, करुणा एवं समर्पण होते हैं।
  • जूँ, खटमल की तरह दूसरों पर नहीं पलना चाहिए, बल्कि अंत समय तक कार्य करते जाओ; क्योंकि गतिशीलता जीवन का आवश्यक अंग है।
  • जनसंख्या की अभिवृद्धि हज़ार समस्याओं की जन्मदात्री है।
  • जानकारी व वैदिक ज्ञान का भार तो लोग सिर पर गधे की तरह उठाये फिरते हैं और जल्द अहंकारी भी हो जाते हैं, लेकिन उसकी सरलता का आनंद नहीं उठा सकते हैं।
  • ज़्यादा पैसा कमाने की इच्छा से ग्रसित मनुष्य झूठ, कपट, बेईमानी, धोखेबाज़ी, विश्वाघात आदि का सहारा लेकर परिणाम में दुःख ही प्राप्त करता है।
  • जिसने जीवन में स्नेह, सौजन्य का समुचित समावेश कर लिया, सचमुच वही सबसे बड़ा कलाकार है।
  • जिसका हृदय पवित्र है, उसे अपवित्रता छू तक नहीं सकता।
  • जिनका प्रत्येक कर्म भगवान को, आदर्शों को समर्पित होता है, वही सबसे बड़ा योगी है।
  • जिसका मन-बुद्धि परमात्मा के प्रति वफ़ादार है, उसे मन की शांति अवश्य मिलती है।
  • जिसकी मुस्कुराहट कोई छीन न सके, वही असल सफ़ा व्यक्ति है।
  • जिसकी इन्द्रियाँ वश में हैं, उसकी बुद्धि स्थिर है।
  • जिनकी तुम प्रशंसा करते हो, उनके गुणों को अपनाओ और स्वयं भी प्रशंसा के योग्य बनो।
  • जिसके पास कुछ नहीं रहता, उसके पास भगवान रहता है।
  • जिनके अंदर ऐय्याशी, फिजूलखर्ची और विलासिता की कुर्बानी देने की हिम्मत नहीं, वे अध्यात्म से कोसों दूर हैं।
  • जिसके मन में राग-द्वेष नहीं है और जो तृष्‍णा को, त्‍याग कर शील तथा संतोष को ग्रहण किए हुए है, वह संत पुरूष जगत के लिए जहाज़ है।
  • जिसके पास कुछ भी कर्ज़ नहीं, वह बड़ा मालदार है।
  • जिनके भीतर-बाहर एक ही बात है, वही निष्कपट व्यक्ति धन्य है।
  • जिसने शिष्टता और नम्रता नहीं सीखी, उनका बहुत सीखना भी व्यर्थ रहा।
  • जिन्हें लम्बी ज़िन्दगी जीना हो, वे बिना कड़ी भूख लगे कुछ भी न खाने की आदत डालें।
  • जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं होता।
  • जौ भौतिक महत्त्वाकांक्षियों की बेतरह कटौती करते हुए समय की पुकार पूरी करने के लिए बढ़े-चढ़े अनुदान प्रस्तुत करते और जिसमें महान परम्परा छोड़ जाने की ललक उफनती रहे, यही है – प्रज्ञापुत्र शब्द का अर्थ।
  • ज़माना तब बदलेगा, जब हम स्वयं बदलेंगे।
  • जाग्रत आत्माएँ कभी चुप बैठी ही नहीं रह सकतीं। उनके अर्जित संस्कार व सत्साहस युग की पुकार सुनकर उन्हें आगे बढ़ने व अवतार के प्रयोजनों हेतु क्रियाशील होने को बाध्य कर देते हैं।
  • जाग्रत अत्माएँ कभी अवसर नहीं चूकतीं। वे जिस उद्देश्य को लेकर अवतरित होती हैं, उसे पूरा किये बिना उन्हें चैन नहीं पड़ता।
  • जाग्रत्‌ आत्मा का लक्षण है- सत्यम्‌, शिवम्‌ और सुन्दरम्‌ की ओर उन्मुखता।
  • जीभ पर काबू रखो, स्वाद के लिए नहीं, स्वास्थ्य के लिए खाओ।

  • झूठे मोती की आब और ताब उसे सच्चा नहीं बना सकती।
  • झूठ इन्सान को अंदर से खोखला बना देता है।

  • ठगना बुरी बात है, पर ठगाना उससे कम बुरा नहीं है।

  • डरपोक और शक्तिहीन मनुष्य भाग्य के पीछे चलता है।

त्र

  • त्रुटियाँ या भूल कैसी भी हो वे आपकी प्रगति में भयंकर रूप से बाधक होती है।

 

 

Source:- http://bharatdiscovery.org/

Note::-

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CYMT-KMSRAJ51

“तू ना हो निराश कभी मन से”

—–

मन काे कैसे नियंत्रण में करें।

मन के विचारों काे कैसे नियंत्रित करें॥

विचारों के प्रकारएक खुशी जीवन के लिए।

अपनी सोच काे हमेशा सकारात्मक कैसे रखें॥

“मन के बहुत सारे सवालाें का जवाब-आैर मन काे कैसे नियंत्रित कर उसे सहीं तरिके से संचालित कर शांतिमय जीवन जियें”

 

अगर जीवन में सफल हाेना हैं. ताे जहाँ १० शब्दाें से काेई बात बन जाये वहा पर

१०० शब्द बाेलकर अपनी मानसिक और वाणी की ऊर्जा को नष्ट नहीं करना चाहिए॥

-Kmsraj51

 

 

 

 

 

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