Kmsraj51 की कलम से…..
1. आसक्ति का त्याग करते हुए सिद्बि और असिद्धि में समान बुद्धि वाला होकर कर्म करना चाहिए। समता का नाम ही योग है।
गीता
2. समानता की बात तो बहुत से लोग करते हैं, लेकिन जब उसका अवसर आता है तो खामोश रह जाते हैं।
प्रेमचंद
3. समानता का बर्ताव ऐसा होना चाहिए कि नीचे वाले को उसकी खबर भी न हो।
महात्मा गांधी
4. पूरी तरह से समता आए बिना कोई भी सिद्ध योगी, सिद्ध भक्त या सिद्ध ज्ञानी नहीं समझा जा सकता।
अज्ञात
5. बड़ों की कुछ समता हम विनीत होकर ही पाते हैं।
रवींद्रनाथ
6. मनुष्य के सारे व्यवहारों में ज्वार भाटा का सा उतार चढ़ाव होता है। यदि मनुष्य बाढ़ को पकड़े तो भाग्य की ड्योढ़ी पर पहुंच जाए।
शेक्सपियर
7. मनुष्य के लिए जीवन में सफलता का रहस्य हर आने वाले अवसर के लिए तैयार रहना है।
डिजरायली
8. अवसर भी बुद्धिमान के ही पक्ष में लड़ता है, मूर्ख के नहीं।
यूरीपेडीज
9. अवसर बार बार हाथ नहीं लगता। ऐसा मत सोचो कि अवसर तुम्हारा द्वार दोबारा खटखटाएगा।
सफोक्लीज
10. समय और उचित अवसर पर बोला गया एक शब्द युगों की बात है।
कार्लाइल
11. अवसर के अनुकूल आचरण हमें कहीं का कहीं पहुंचा देता है।
चेखव
12. संसार में ऐसा कोई भी नहीं है जो नीति का जानकार न हो, परंतु उसके प्रयोग से लोग विहीन होते हैं।
कल्हण
13. कभी-कभी समय के फेर से मित्र शत्रु बन जाता है और शत्रु भी मित्र हो जाता है, क्योंकि स्वार्थ बड़ा बलवान है।
वेदव्यास
14. जहां स्थूल जीवन का स्वार्थ समाप्त होता है, वहीं मनुष्यता प्रारंभ होती है।
हजारी प्रसाद द्विवेदी
15. नीच व्यक्ति किसी प्रशंसनीय पद पर पहुंचने के बाद सबसे पहले अपने स्वामी को ही मारने को उद्यत होता है।
नारायण पंडित
16. जो अत्याचारी के प्रति विद्रोह करता है, उसका साथ सब देना चाहते हैं।
माखनलाल चतुर्वेदी
17. अत्याचार जब निरंकुश होकर नग्न तांडव करने लगता है, तब बलिवेदी पर चढ़ने को तैयार होने के सिवा और कोई भी उपाय नहीं रह जाता।
हिंदू पंच
18. अनाचार और अत्याचार सिर झुकाकर वे ही सहन करते हैं जिनमें नैतिकता और चरित्र का अभाव हुआ करता है।
एक कहावत
19. अन्यायी और अत्याचारी की करतूतें मनुष्यता के नाम खुली चुनौती हैं जिसे वीर पुरुषों को स्वीकार करना ही चाहिए।
श्रीराम शर्मा आचार्य
20. कायर लोग अपने जीवन काल में कई बार मरते हैं, लेकिन वीर लोग केवल एक बार मरते हैं।
शेक्सपियर
21. संसार में कायरों के लिए कहीं स्थान नहीं है। हम सबको किसी न किसी प्रकार कठोर परिश्रम करने, दुख उठाने और मरने के लिए तैयार रहना चाहिए।
स्टीवेंसन
22. कायर व्यक्ति जीवन में हरदम चापलूसी करता रह जाता है और निर्भीक अपने श्रम के बल पर अपनी जगह बना लेने में सफल हो जाता है।
अस्त्रोवस्की
23. चुनौतियों को स्वीकार करने वाले ही असली बहादुर होते हैं।
लू शुन
24. स्वाधीनता ही स्वाधीनता का अंत नहीं है। धर्म , शांति और काव्य – आनंद , यह सब और भी बड़े हैं। इनकेविकास के लिए स्वाधीनता चाहिए , नहीं तो उसका मूल्य ही क्या है।
शरतचंद्र
25. पराधीनता की विजय से स्वाधीनता की पराजय हजार गुना बेहतर है।
अज्ञात
26. स्वाधीनता पा लेना आसान है , लेकिन उसे बनाए रखना आसान नहीं।
माखनलाल चतुर्वेदी
27. बंधे बैल और छुटे सांड में बड़ा अंतर है। एक रातिब पाकर भी दुर्बल है , दूसरा घास – पात खाकर ही मस्त होरहा है। स्वाधीनता बड़ी पोषक वस्तु है।
प्रेमचंद
28. सुधारक चाहे कितना भी श्रेष्ठ पंक्ति का क्यों न हो, जब तक जनता उसे परख नहीं लेगी, उसकी बात नहीं सुनेगी।
विनोबा भावे
29. उपहास और विरोध तो किसी भी सुधारक के लिए पुरस्कार जैसे हैं।
प्रेमचंद
30. जो सुधारक अपने संदेश के अस्वीकार होने पर क्रोधित हो जाता है, उसे सावधानी, प्रतीक्षा और प्रार्थना सीखने के लिए वन में चले जाना चाहिए।
महात्मा गांधी
31. आत्मा को आत्मा की ही आवाज जगा सकती है।
प्रेमचंद
32. परमात्मा की प्रार्थना करने के लिए एकत्र होने वाले लोग हृदय से एक हो जाते हैं।
विनोबा
33. निर्मल अंत:करण को जिस समय जो प्रतीत हो वही सत्य है। उस पर दृढ़ रहने से शुद्ध सत्य की प्राप्ति हो जाती है।
महात्मा गांधी
34. जिस प्रकार दीपक दूसरी वस्तुओं को प्रकाशित करता है और अपने स्वरूप को भी प्रकाशित करता है, उसी प्रकार अंत:करण दूसरी वस्तुओं को भी प्रत्यक्ष करता है और अपने आप को भी।
संपूर्णानंद
35. संदेह की स्थिति में सज्जनों के अंत:करण की प्रवृत्ति ही प्रमाण होती है।
कालिदास
36. मानव से संबंधित सभी वस्तुएं यदि उन्नति नहीं करतीं तो उनका ह्रास होने लगता है।
गिबन
37. केवल वही व्यक्ति जीवन में उन्नति कर रहा है जिसका हृदय कोमल , खून गर्म , दिमाग तेज होता जाता है औरजिसके मन को शांति मिलती जाती है।
रस्किन
38. यदि समाज के हर वर्ग तक उन्नति का भाग नहीं पहुंचता तो समझ लीजिए जरूर कहीं कुछ गड़बड़ है।
सेनेका
39. स्त्री की उन्नति या अवनति पर ही राष्ट्र की उन्नति या अवनति निर्भर करती है।
अरस्तू
40. प्रकृति अपनी उन्नति और विकास में रुकना नहीं जानती। वह अपना अभिशाप प्रत्येक अकर्मण्यता पर लगाती है।
गेटे
41. हमारे यथार्थ शत्रु तीन हैं-दरिद्रता, रोग और मूर्खता। वे वीर धन्य हैं जो इन तीनोें के विरुद्ध युद्ध छेड़ते हैं। वे मानवता के यथार्थ के उपासक और हमारे सच्चे सेनानायक हैं।
रामवृक्ष बेनीपुरी
42. छोटे शत्रु को छोटे उपाय करके ही काबू मेें लाना चाहिए। जैसे चूहे को सिंह नहीं बिल्ली ही मारती है।
माघ
43. अपने शत्रु को कभी छोटा मत समझो। देखो, तिनकोें के बड़े ढेर को आग की छोटी सी चिंगारी भस्म कर देती है।
वृंद
44. आपके पास पचास मित्र हैं, यह अधिक नहीं है। आपके पास एक शत्रु है, यह बहुत अधिक है।
एक कहावत
45. विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों का प्रिय करने वाले दुर्लभ होते हैं।
शूद्रक
46. चंद्रमा की किरणों से खिल उठने वाला कुमुद पुष्प सूर्य की किरणों से नहीं खिला करता।
कालिदास
47. संपूर्ण कला केवल प्रकृति का ही अनुसरण है।
सेनेका
48. मानव की बहुमुखी भावनाओं का प्रबल प्रवाह जब रोके नहीं रुकता है, तभी वह कला के रूप में फूट पड़ता है।
रस्किन
49. कला विचार को मूर्ति में परिणित करती है।
एमर्सन
50. दुनिया में दो ही ताकतें हैं, तलवार और कलम। और अंत में तलवार हमेशा कलम से हारती है।
नेपोलियन
51. कला प्रकृति द्वारा देखा हुआ जीवन है।
एमिल जोला
52. धर्म का उपदेश सुनने से कोई धर्मात्मा नहीं हो जाता, किंतु उपदेशानुसार व्यवहार करने से मनुष्य धर्मात्मा हो सकता है।
अज्ञात
53. फल मनुष्य के कर्म के अधीन है , बुद्धि कर्म के अनुसार आगे बढ़ने वाली है , फिर भी विद्वान और महात्मालोग अच्छी तरह से विचार कर ही कोई कर्म करते हैं।
चाणक्य
54. अधिक बलवान तो वे ही होते हैं जिनके पास बुद्धि बल होता है। जिनमें केवल शारीरिक बल होता है, वे वास्तविक बलवान नहीं होते।
वेदव्यास
55. सच्चा बलवान तो वही होता है, जिसने अपने मन पर पूरी तरह से नियंत्रण कर लिया हो।
विनोबा भावे
56. इच्छाओं के सामने आते ही बड़ी से बड़ी प्रतिज्ञाएं भी ताक पर धरी रह जाती हैं। समस्त भय और चिंता इच्छाओं का परिणाम है।
स्वामी रामकृष्ण
57. यदि हमारी इच्छाशक्ति ही कमजोर होने लगेगी तो मानसिक शक्तियां भी उसी तरह काम करने लगेंगी।
महात्मा गांधी
58. काम आरंभ करने मेें देर न करो। और अगर काम शुरू कर दिया है तो उसे पूरा कर के ही छोड़ो।
विनोबा भावे
59. सच्चे इंसान द्वारा किए गए कर्म न सिर्फ खुशबू देते हैं बल्कि दूसरोें को खुश भी करते हैं।
विष्णु प्रभाकर
60. चरित्र संपत्ति है। यह संपत्ति में सबसे उत्तम है।
स्माइल्स
61. चरित्र जीवन में शासन करने वाला तत्व है और इसका स्थान प्रतिभा से ऊंचा है।
फ्रेडरिक सांडर्स
62. गुण एकांत में अच्छी तरह विकसित होता है। चरित्र का निर्माण संसार के भीषण कोलाहल में होता है।
गेटे
63. चरित्र एक वृक्ष के समान है और ख्याति उसकी छाया है। छाया वही है जो हम उसके बारे में सोचते हैं, परंतु वृक्ष वास्तविक वस्तु है।
लिंकन
64. चरित्र एक ऐसा हीरा है जो हर पत्थर को घिस सकता है।
बर्टल
65. चोरी से कोई धनवान नहीं बन सकता, दान से कोई कंगाल नहीं हो सकता। थोड़ा सा झूठ भी कभी छिप नहीं सकता। यदि तुम सच बोलोगे तो सारी प्रकृति और सब जीव तुम्हारी सहायता करेंगे। चरित्र ही मनुष्य की पूंजी है।
एमर् सन
66. संसार में ऐसा कोई नहीं हुआ है जो मनुष्य की आशा का पेट भर सके। पुरुष की आशा समुद्र के समान है, वह कभी भरती ही नहीं।
वेदव्यास
67. आत्मविश्वास सरीखा दूसरा मित्र नहीं। आत्मविश्वास ही भावी उन्नति की प्रथम सीढ़ी है।
स्वामी विवेकानंद
68. केवल आत्मज्ञान ही ऐसा है जो हमें सब जरूरतों से परे कर सकता है।
स्वामी रामतीरथ
69. विश्वास वह पक्षी है जो प्रभात के पूर्व अंधकार में ही प्रकाश का अनुभव करता है और गाने लगता है।
रवींद्रनाथ
70. विश्वास के बिना काम करना सतहविहीन गड्ढे में पहुंचने के प्रयत्नों के समान है।
महात्मा गांधी
71. यदि तुम भूख से पीडि़त किसी कुत्ते को उठा लो और उसकी देखभाल करके उसे खुश करो तो वह तुम्हें कभी नहीं काटेगा। मनुष्य और कुत्ते में यही प्रधान अंतर है।
मार्क ट्वेन
72. कृतज्ञ और प्रसन्न हृदय से की गई पूजा ईश्वर को सबसे अधिक प्रिय है।
प्लूटार्क
73. कृतज्ञता मित्रता को चिरस्थायी रखती है और नए मित्र बनाती है।
एक कहावत
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आपका सबका प्रिय दोस्त,
Krishna Mohan Singh(KMS)
Head Editor, Founder & CEO
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सदा खुश रहना और खुशी बांटना-यही सबसे बड़ा शान है।
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– कुछ उपयोगी पोस्ट सफल जीवन से संबंधित –
“अगर अपने कार्य से आप स्वयं संतुष्ट हैं, ताे फिर अन्य लोग क्या कहते हैं उसकी परवाह ना करें।”
-KMSRAJ51
किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए हिम्मत और उमंग-उत्साह बहुत जरूरी है।
जहाँ उमंग-उत्साह नहीं होता वहाँ थकावट होती है और थका हुआ कभी सफल नहीं होता।
~KMSRAJ51
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